Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 13
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार हैं कि मेरा गुलाब, लेकिन गुलाब तो यही समझ रहा है कि मैं खुद ही हूँ। किसी और का नहीं हूँ। सभी अपने खुद के स्वार्थ से प्रेरित हैं। ये तो हम पगला अहंकार करते है, पागलपन करते हैं। प्रश्नकर्ता : यदि हम गुलाब को पानी न दें, तो गुलाब तो मुरझा जाएगा। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार कि 'मैंने इतना-इतना किया, तुम्हें पता नहीं? तुम्हें मेरी कीमत नहीं है'। अरे मुए, क्यों कीमत खोजता है? यह जो कुछ किया वह तो फर्ज निभाया! एक आदमी अपने लड़के के साथ बहस कर रहा था, बाद में मैंने उसे डाँटा। वह कहता था, 'कर्ज कर के मैंने तुझे पढ़ाया। अगर मैं कर्ज न लेता तो क्या तू पढ़ सकता था? भटकता रहता।' मुए, बिना वजह बकवास क्यों कर रहा है? यह तो तुम्हारा फर्ज है, ऐसा नहीं कह सकते। यह तो लड़का समझदार है। अगर आपको किस ने पढ़ाया?' ऐसा पूछता तो क्या जवाब देते? ऐसा पागल की तरह बोलते रहते हैं न लोग? मूर्ख लोग, नासमझ, कुछ पता ही नहीं। ___बच्चों के लिए सब कुछ करना चाहिए। लेकिन बच्चे कहें कि 'नहीं पिताजी अब बहुत हो गया।' तो भी पिता उसे छोड़ता नहीं, तब क्या करें? बच्चे लाल झंडी दिखायें तो हमें समझना नहीं चाहिए? तुम्हें कैसा लगता है? फिर वह कहे कि मुझे व्यवसाय करना है, तो हमें व्यवसाय के लिए कुछ रास्ता कर देना चाहिए। इससे ज्यादा गहराई तक जानेवाला पिता मूर्ख है। यदि वह नौकरी में लग गया हो तो अपने पास जो कुछ हो, उसे गांठ बाँधकर रख देना चाहिए। किसी वक्त मुसीबत में हो, तब हज़ारदो हज़ार भेजना चाहिए। किन्तु यह तो हमेशा पूछता ही रहता है। तब लड़का कहता है 'आपको मना करता हूँ न कि मेरी बात में दखल मत करना।' तब यह क्या कहता है, 'अभी उसमें अक्ल नहीं है, इसलिए ऐसा कहता है।' अरे, यह तो आप निवृत्त हो गए; अच्छा ही हुआ, जंजाल से छूटे। लड़का खुद ही आपको मना कर रहा है न! __ प्रश्नकर्ता : सही रास्ता कौन-सा? हम वहाँ बच्चे संभालें या हमारे कल्याण के लिए सत्संग में आएँ? दादाश्री : बच्चे तो अपने आप संभल रहे हैं। बच्चों को तुम क्या संभालोगे? अपना कल्याण करना वही मुख्य धर्म है। बाकी ये बच्चे तो संभले हुए हैं न! बच्चों को क्या तुम बड़े करते हो? बाग में गुलाब के पौधे लगाये हों तो रात में बढ़ते हैं या नहीं बढ़ते? वह तो हम मानते दादाश्री : न दें ऐसा होता ही नहीं न! लड़के को अच्छी तरह न रखें तो लड़का काटने को दौड़ेगा या तो ढेला मारेगा। अब सांसारिक फर्ज निभाते समय धर्म कार्य का समन्वय किस प्रकार हो? लड़का उल्टा बोल रहा हो तो भी हमें अपना धर्म चूके बगैर, फर्ज पूरा करना चाहिए। आपका धर्म क्या? लड़के को पाल-पोष कर बड़ा करना, उसे सही रास्ते पर चलाना। अब वह टेढा बोल रहा है, और आप भी टेढ़ा बोलो तो परिणाम क्या होगा? वह बिगड़ जाएगा। इसलिए आपको प्रेम से उसे फिर से समझाना चाहिए कि बैठो भाई, देखो, ऐसा है, वैसा है। यानी सभी फर्जी के साथ धर्म होना चाहिए। धर्म नहीं होगा तो उसकी जगह अधर्म आ जाएगा। कोठरी खाली नहीं रहेगी। अभी यहाँ हमने कोठरियाँ खाली रख छोड़ी हों तो लोग ताला खोलकर घुस जाएँगे कि नहीं घुस जाएँगे? घर में स्त्रियों का सच्चा धर्म क्या? आसपास के सभी लोग ऐसा कहें कि वाह ! क्या कहना! फर्ज़ ऐसा निभायें कि आसपास के लोग खुश हो जाएँ। इसलिए स्त्री का सच्चा धर्म है कि बच्चों की परवरिश करना, उन्हें अच्छे संस्कार देना; पति में संस्कार कम हों तो संस्कार सींचना। सबकुछ अपना सुधारना, इसका नाम धर्म। सुधारना नहीं पड़ता? कुछ लोग तो क्या करते हैं? भगवान की भक्ति में तो तन्मय रहते हैं, मगर बच्चों को देखकर चिढ़ते हैं। जिनमें भगवान प्रकट हुए ऐसे बच्चों को देखकर चिढ़ता है और वहाँ भगवान की भक्ति करता रहता है, उसका नाम भगत ! इन बच्चों पर चिढ़ना चाहिए क्या? अरे ! इनमें तो भगवान प्रकट है!

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