Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 32
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : वे बच्चे वहाँ खा-पीकर मजा कर रहे होंगे, माँ को याद भी नहीं करते होंगे और माँ यहाँ चिंता करती रहती है, यह कैसी बात? प्रश्नकर्ता : वे लड़के वहाँ से लिखते हैं कि तुम यहाँ आ जाओ। दादाश्री : हाँ! पर जाना क्या अपने हाथ में है? उसके बजाय हम ही जैसा है वैसा बंदोबस्त कर लें। वह गलत है क्या? वे उनके घर, हम अपने घर ! इस कोख से जन्म हुआ इसलिए क्या हमारे हो गए सब? हमारे हों तो हमारे साथ आयें लेकिन कोई आता है इस संसार में? घर में पचास व्यक्ति हों, लेकिन हमें पहचानना नहीं आया इसलिए गड़बड़ होती रहती है। उन्हें पहचानना चाहिए न? यह गुलाब का पौधा है कि किसका पौधा है, यह पता नहीं लगाना चाहिए? पहले क्या था? सत्युग में एक घर में सब गुलाब और दूसरे घर में सभी मोगरा, तीसरे घर चंपा! अभी क्या हुआ है कि एक ही घर में मोगरा है, गुलाब है, चंपा है! गुलाब होगा तो काँटे होंगे और यदि मोगरा है तो काँटे नहीं होंगे, मोगरे का फल सफेद होगा, गुलाब गुलाबी होगा, लाल होगा। इस समय ऐसे अलग-अलग पौधे हैं। यह बात आपकी समझ में आई? सत्युग में जो खेत थे, आज कलियुग में वे बगीचे जैसे हो गए हैं! पर उन्हें देखना नहीं आता, उसका क्या करें? उन्हें सही देखना न आये तो दुःख ही होगा न? इस जगत् के लोगों के पास यह देखने की दृष्टि नहीं है। कोई बुरा होता ही नहीं। यह मतभेद तो अपना-अपना अहंकार है। देखना नहीं आता उसका दु:ख है। देखना आए तो दुःख ही नहीं! मुझे सारे संसार में किसी के भी साथ मतभेद ही नहीं होता। मुझे देखना आता है कि यह गुलाब है या मोगरा है। वह धतूरा है कि कड़वी तुरई का फूल है, ऐसे सबको पहचानें। प्रकृति को पहचानते ही नहीं इसलिए मैंने पुस्तक में लिखा है, 'आज घर बगीचा हुआ है। इस लिए काम निकाल लो इस समय में।' माता-पिता और बच्चों का व्यवहार जो खुद 'नोबल' (उदार) हो और लड़का कंजूस हो तो कहेगा, 'मेरा बेटा बिलकुल कंजूस है।' उसे वह मार-पीट कर 'नोबल' करना चाहे तो नहीं होगा। वह माल ही अलग है। जबकि माता-पिता उसे अपने जैसा करना चाहते हैं। अरे, उसे खिलने दो, उसकी शक्तियाँ जो हैं उन्हें खिलाओ। किसका स्वभाव कैसा है, वह देख लेना है। मुए, किस लिए उनसे झगड़ते हो। इस बगीचे को पहचानने जैसा है। 'बगीचा' कहता हूँ तब लोग समझते हैं और फिर अपने लड़के को पहचानते हैं। प्रकृति को पहचान ! एक बार लड़के को पहचान ले और उसके मुताबिक व्यवहार कर। उसकी प्रकृति को देखकर व्यवहार करें तो क्या हो? मित्र की प्रकृति को 'एडजस्ट' होते हैं कि नहीं? ऐसे प्रकृति को देखना पड़ता है, प्रकृति को पहचानना पड़ता है। पहचान कर चलें तो घर में टंटा-फसाद नहीं हो। यहाँ तो मार-पीट कर मेरे जैसे बनो,' ऐसा कहते हैं। ऐसे किस प्रकार हो सकते हैं? सारा संसार ऐसे व्यवहार ज्ञान की खोज में है, यह धर्म नहीं है। यह ज्ञान संसार में रहने का इलाज है। संसार मे एडजस्ट होने का उपाय है। वाइफ के साथ कैसे एडजस्टमेन्ट करें, लड़के के साथ कैसे एडजेस्टमेन्ट करें, उसके उपाय हैं। घर में खिटपिट हो, तब इस वाणी के शब्द ऐसे हैं कि सबकी तकलीफ मिट जाए। इस वाणी से सब अच्छा होता है। जिससे दुःख चले जाएँ ऐसी वाणी लोग खोजते हैं। क्योंकि किसी ने ऐसे उपाय ही नहीं बताये न ! सीधे काम आनेवाले हों ऐसे उपाय ही नहीं हैं न! १०. शंका के शूल एक आदमी मेरे पास आता था। उसकी एक लड़की थी। उसको मैंने पहले से समझाया था कि 'यह तो कलियुग है, इस कलियुग का असर लड़की पर भी होता है। इसलिए सावधान रहना।' वह आदमी समझ गया

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