Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 51
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार यह दोस्ती अच्छी नहीं, लोग तो छल-कपटवाले होते हैं। सहेलियों के साथ मित्राचारी कर सकते हैं। पुरुषों की मित्राचारी नहीं करनी चाहिए। धोखा देकर निकल जाते हैं। कोई विश्वासपात्र नहीं होता, सभी दगाबाज। एक भी असली नहीं होता। बाहर किसी का विश्वास मत करना। शादी कर लेना अच्छा, इधर-उधर भटकें उसमें सार नहीं निकलता। तेरे माता-पिता शादी-शुदा हैं तो है कुछ झंझट? ऐसे तुझे भी शादी के नाते से बँध जाना पसंद नहीं आया? खूटे से बँधना (शादी के रिश्ते से जुड़ जाना) तुझे पसंद नहीं? मुक्त रहना पसंद है? लड़कियों से कहता हूँ कि शादी क्यों नहीं करती? तब कहती हैं, 'क्या दादाजी आप भी ऐसा कहते हैं हमें शादी करने को कहते हैं!' मैंने कहा, 'इस संसार में शादी किए बिना नहीं चलेगा, ब्रह्मचर्य का पालन करना है ऐसा डिसाइड करो और वह भी निश्चित, यक़ीनन होना चाहिए। ऐसा न हो तो शादी कर लो, लेकिन दो में से एक में आ जाओ।' तब कहती हैं, 'क्यों शादी करने को कहते हैं?' मैंने कहा, 'क्यों? क्या तकलीफ है? कोई अच्छा लड़का नहीं मिलता?' तो बोली, 'अच्छे लड़के कहाँ हैं? बुद्ध हैं, मुए बुद्ध से क्या शादी करनी?' इस पर मैं चौंक पड़ा। मैंने कहा, 'ये लड़कियाँ कैसी हैं? देखो तो, अभी से इनका इतना पावर है, तो बाद में उन्हें कैसे जीने देंगी, बेचारों को?' इसलिए कईं लड़के मुझसे कहते हैं, 'हमें शादी नहीं करनी।' लड़कियाँ क्या कहती हैं, 'बुद्धू से क्यों शादी करूँ?' मैंने कहा, 'ऐसा मत बोलना। तेरे मन में से, वह बुद्ध है, यह निकाल दे। क्योंकि शादी किए बिना चारा नहीं है।' ऐसा नहीं चलता। मन में बुद्धू है ऐसा घुस जाये तो फिर सदैव झगड़े होते हैं। तुझे वह बुद्धू ही लगता रहेगा। सारा संसार मोक्ष की ओर ही जा रहा है, पर मोक्ष के लिए यह सब हैल्पिंग (सहायक) नहीं होता। ये तो लड़-झगड़ कर उल्टे ब्रेक लगाते हैं। वर्ना गरमी का ऐसा स्वभाव है कि बारिश खींच लाती है। जहाँ हो वहाँ से खींच लाती है। गरमी का स्वभाव है, बढ़ती जाती है और बारिश खींच लाती है। यह संसार भड़क रखने जैसा नहीं है। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार इस संसार का स्वभाव ऐसा है कि हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। मोक्ष को खींच लाता है। संसार जितना ज्यादा कठिन हो न, उतना मोक्ष जल्दी आता है। लेकिन कठिन हो तो हमें बिगड़ नहीं जाना चाहिए, स्थिर रहना चाहिए। सच्चे उपाय करने जैसा है, गलत उपाय करने पर फिर से गिर पड़ते हैं। दुःख आया तब ऐसा समझना कि मेरे आत्मा के लिए विटामिन मिला और सुख प्राप्त हुआ तो देह का विटामिन मिला, ऐसे समझना। हमें हर रोज विटामिन मिलता है, हम तो ऐसा मानकर बचपन से टेस्ट करके आगे बढ़े हैं। आप तो एक ही तरह के विटामिन को विटामिन कहते हो, वह बुद्धि का विटामिन है। जब कि ज्ञान दोनों को विटामिन कहता है। वह विटामिन अच्छा कि बहुत कुछ खाने को हो, फिर भी लोग तप करते हैं। मजेदार साग-सब्जी हो, फिर भी लोग तप करते हैं। तप करते हैं यानी दुःख सहन करते हैं ताकि आत्मा का विटामिन मिले। यह सब तुम्हारे सुनने में नहीं आया है? प्रश्नकर्ता : हाँ, आया है दादाजी। दादाश्री : और यह तप तो घर बैठे अपने आप मिलता है। लव मैरिज पसंद करने जैसी चीज़ नहीं है। कल उसका मिजाज़ कैसा निकले, किसे मालूम है? माता-पिता पसंद करें, उसे देखना। लड़का बेवकूफ या डिफेक्टवाला तो नहीं है न? बेवकूफ नहीं होना चाहिए! क्या बेवकूफ होते है? __ हमें कुछ पसंद आए ऐसा चाहिए। थोड़ा हमारे मन को भाये ऐसा होना चाहिए। बुद्धि की लिमिट में आना चाहिए। अहंकार एक्सेप्ट करे ऐसा चाहिए और चित्त को भाए ऐसा चाहिए? चित्त को भाए ऐसा चाहिए न। अत: माता-पिता खोजें उसमें हर्ज नहीं, पर हमें भी खुद देख लेना चाहिए। प्रश्नकर्ता : कभी कभी माता-पिता भी लड़का खोजने में भूल कर सकते हैं?

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