Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 40
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार एक दिन हमें जाना पड़ेगा सबकुछ छोड़कर। छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा? तो फिर हाय-हाय किसलिए? पिछले जन्म के बच्चे कहाँ गए? पिछले जन्म के बच्चे कहाँ रहते हैं? प्रश्नकर्ता: वो तो ईश्वर जाने! दादाश्री : लो! पिछले जन्म के बच्चों का पता नहीं, इस जन्म के बच्चों का ऐसा हुआ। इन सबका कब निबेड़ा आयेगा? मोक्ष में जाने की बात करो न, वर्ना नाहक अधोगति में चले जाओगे। परेशानियों से जब ऊब जाए, तब उससे कौन-सी गति होगी? यहाँ से फिर मनुष्य गति में से किस गति में जन्म होगा? जानवर गति, अति निंदनीय कार्य किए हो तो नर्क गति में भी जाना पड़ सकता है। नर्कगति-पशुगति पसंद है? एक-एक जन्म में भयंकर मार खाई है, लेकिन पहले की खाई मार भूलता जाता है और नयी मार खाता रहता है। पिछले जन्म के बच्चे छोड़ आता है और नये, इस जन्म के बच्चे गले लगाता है। १४. नाता, रिलेटिव या रिअल? यह रिलेटिव संबंध है! संभल संभलकर काम लेना है। यह रिलेटिव संबंध है, इसलिए आप जितना रिलेटिव रखेंगे उतना रहेगा। आप जैसा रखेंगे वैसा रहेगा, इसका नाम व्यवहार है। __ आप मानते हैं कि लड़का मेरा है, इसलिए कहाँ जानेवाला है? अरे! आपका लड़का है, मगर घड़ीभर में विरोधी हो जाएगा। कोई आत्मा बाप-बेटा नहीं होता। यह तो पारस्परिक लेन-देन का हिसाब है। घर जाकर ऐसा मत कहना कि आप मेरे पिता नहीं है। वैसे वे व्यवहार से तो, पिता हैं ही न! ___ संसार में ड्रामेटिक रहने का है। 'आईए बहन जी' आओ बेटी,' ऐसे, यह सब सुपर फल्युअस (ऊपर-ऊपर से) व्यवहार करने का है। तब अज्ञानी क्या करता है कि बेटी को गोदी में बिठाया करता है. बेटी भी उस पर चिढ़ती है जब कि ज्ञानीपुरुष व्यवहार में सुपर फल्युअस रहते हैं। इसलिए सभी उन पर खुश रहते हैं, क्योंकि लोग सुपर फल्युअस ६२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार व्यवहार चाहते हैं। ज्यादा आसक्ति लोगों को पसंद नहीं होती। इसलिए हमें भी सुपर फल्युअस रहना है। इस सब झंझट में पड़ना नहीं है। ज्ञानी क्या समझते हैं? बेटी की शादी हई. वह भी व्यवहार और बेटी बेचारी विधवा हुई, वह भी व्यवहार। यह 'रिअल' नहीं होता। ये दोनों ही व्यवहार हैं, रिलेटिव हैं और किसी से पलटा नहीं जा सकता ऐसा है! अब ये लोग क्या करते हैं? दामाद मर जाए, उसके पीछे सिर फोड़ें, तब उल्टा डॉक्टर बुलाना पड़ता है। उल्टा वह राग-द्वेष के अधीन है न! व्यवहार, व्यवहार है ऐसा समझ में आया नहीं है इसीलिए न! बच्चों को डाँटना पड़े, बीवी को दो शब्द कहने पड़ें तो नाटकीय भाषा में, ठंडा रहकर गुस्सा करना। नाटकीय भाषा यानी क्या कि ठंडे कलेजे से गुस्सा करना। इसको कहते हैं नाटक! १५. वह है लेन-देन, नाता नहीं बीवी-बच्चे अगर अपने होते न, तब इस शरीर को कितनी भी तकलीफ़ होती तो उसमें से थोड़ी वाइफ ले लेती, 'अर्धागिनी' कहलाती है न! लकवा मार गया हो तो लड़का ले लेगा? नहीं, कोई लेता नहीं। यह तो सब हिसाब है! बाप के पास जितना तुम्हारा माँगने का हिसाब था, उतना ही तुम्हें मिला है। एक लड़के को उसकी माँ, कुछ गलत नहीं करे तो भी मारती रहती है और एक लड़का बहुत ऊधम मचाता हो, फिर भी उसे लाड़ करती रहती है। पाँचों लड़के उसी माँ के हैं लेकिन पाँचों के प्रति अलग अलग बर्ताव होता है, इसकी क्या वजह? प्रश्नकर्ता : उनमें से प्रत्येक के कर्म के उदय भिन्न होंगे? दादाश्री : वह तो हिसाब ही चुक रहा है। माँ को पाँचों लड़कों पर समान भाव रखना चाहिए, पर रहेगा कैसे? और फिर लड़के कहते हैं, मेरी माँ इसका पक्ष लेती है। ऐसे चिल्लाते हैं। इस दुनिया में ऐसे झगड़े

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