Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 46
________________ ७३ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार वाइल्ड लाइफ (असंस्कृत जीवन) नहीं होनी चाहिए, इन्डियन लाइफ (संस्कृत जीवन) होनी चाहिए। तुम अच्छे होगे तब तुम्हें पत्नी भी अच्छी मिलेगी। उसका नाम ही 'व्यवस्थित,' जो एक्जेक्ट होता है। (व्यवस्थित शक्ति यानी साइंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्सेस, जो हमें हमारे कर्मों के अनुसार संयोग इकट्ठे करके देती है।) प्रश्नकर्ता : कोई भी लडकी चलेगी। मैं कछ कलर-वलर में नहीं मानता। जो लड़की अच्छी हो, अमरिकन हो कि इन्डियन हो, तो भी हर्ज नहीं। दादाश्री : पर ऐसा है न, यह अमरिकन आम और हमारे आमों में फर्क होता है, यह तू नहीं जानता? क्या फर्क होता है हमारे आमों में? प्रश्नकर्ता : हमारे मीठे होते हैं। दादाश्री : हाँ, तब फिर देखना। वह मीठे चखकर तो देख, हमारे इन्डिया के। प्रश्नकर्ता : अभी चखा नहीं। दादाश्री : नहीं, मगर इसमें फँसना नहीं! अमरिकन में फँसने जैसा नहीं है। देख, तेरी मम्मी और पापा को तूने देखा न? क्या उन दोनों में कभी मतभेद होता है या नहीं होता? प्रश्नकर्ता : मतभेद तो होता है। दादाश्री : हाँ, लेकिन उस वक्त तेरी मम्मी घर छोड़कर चली जाती है कभी? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं। दादाश्री : और वह अमरिकन तो 'यू यू' करती यूँ बन्दूक दिखाकर चली जाती है और यह तो सारा जीवन रहती है। इसलिए हम तुझे समझाते माता-पिता और बच्चों का व्यवहार हैं कि भाई, ऐसा मत करना, इस तरफ मुड़ने के बाद पछताओगे। यह इन्डियन तो आखिर तक साथ रहती है, हाँ... रात को झगड़ा करके सवेरे तक रिपेयर (दुरस्त) हो जाती है। प्रश्नकर्ता : बात सही है। दादाश्री : इसलिए अब तय कर ले कि मझे भारतीय लडकी के साथ शादी करनी है। इन्डियन में तुझे जो पसंद हो वह, ब्राह्मिन, बनिया जो तुझे अच्छी लगे, उसमें हर्ज नहीं। प्रश्नकर्ता : अपनी बिरादरी में ही शादी करने के क्या लाभ है, यह ज़रा बताइए। दादाश्री: हमारी कोम्युनिटी (जाति) की पत्नी हो तो हमारे स्वभाव के अनुकूल होगी। हमें कंसार परोसा हो और हम लोगों को घी ज्यादा चाहिए। यदि किसी ऐसी जाति की लड़की लाया हो, तो वह परोसेगी नहीं, ऐसा नीचा हाथ करके डालने में ही उसके हाथ दुःखेंगे। इसलिए उसके भिन्न स्वभाव के साथ सारा दिन टकराव होता रहेगा और अपनी जातिवाली के साथ कुछ नहीं होता। समझ में आया न? वह दूसरी तो भाषा बोले न, तो वह भी बड़ी सफाई के साथ बोलती है और हमारा दोष निकालती है कि तुम्हें बोलना नहीं आता। उसकी तुलना में हमारी अच्छी कि कुछ कहे तो नहीं, हमें डाँटेगी तो नहीं। प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि अपनी जाति की हो वहाँ झगड़ा नहीं होता, पर अपनी जाति की हो, वहाँ पर भी झगड़ा होता है, इसकी क्या वजह? दादाश्री : झगड़ा होता है मगर उसका समाधान हो जाता है। उसके साथ सारा दिन अच्छा लगता है और दूसरी (विजातीय) के साथ अच्छा नहीं लगता। एकाध घण्टा अच्छा लगता है और फिर ऊब जाते हैं। वह आये और झुंझलाहट आती है। अपनी जाति की हो तो पसंद आती है, वर्ना पसंद ही नहीं आती। ये सब जो पछताये हैं, उनके उदाहरण कहता हूँ। ये सब लोग बुरी तरह फँस गये थे। अब तो अंतरजातीय शादी करने में हर्ज नहीं है, पहले थोड़ी तकलीफ थी।

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