Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 41
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ६३ प्रश्नकर्ता : तो उस लड़के के प्रति उस माँ को ऐसा बैर भाव क्यों होता है? दादाश्री : वह उसका कुछ पूर्वभव का बैर है। दूसरे लड़के के प्रति पूर्वभव का राग है। इसलिए राग जताती है। लोग न्याय खोजते हैं कि पाँचों लड़के उसके लिए समान क्यों नहीं? कुछ लड़के अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, ऐसी सेवा करते हैं कि खाना-पीना भी भूल जाएँ। सबके लिए ऐसा नहीं है। हमें जो मिला है सब अपना ही हिसाब है। अपने दोष के कारण हम इकट्ठा हुए हैं। इस कलियुग में हम क्यों आये? सत्युग नहीं था? सत्युग में सब सीधे थे। कलियुग में सब टेढ़े मिल आते हैं। लड़का अच्छा हो तो समधी टेढ़ा मिले और वह लड़ाईझगड़े करता रहे। बहू झगड़ालू मिले और झगड़ती ही रहे। कोई न कोई ऐसा मिल जाता है और घर में लड़ाई-झगड़े चलते ही रहते हैं लगातार । प्रश्नकर्ता : 'वनस्पति में भी प्राण हैं' ऐसा कहते हैं। अब आम का पेड़ हो, उस पेड़ के जितने भी आम हों, उन सभी आमों का स्वाद एक-सा होता है, जब कि इन मनुष्यों में पाँच लड़के हों तो पाँचों लड़कों के विचार - वाणी - वर्तन अलग-अलग, ऐसा क्यों? दादाश्री : आमों में भी अलग-अलग स्वाद होता है, आपकी समझने की शक्ति नहीं है, लेकिन प्रत्येक आम का अलग-अलग स्वाद, प्रत्येक पत्ते में भी फर्क होता है। एक से दिखते हैं, एक ही प्रकार की सुगन्ध हो, पर कुछ न कुछ फर्क होता है। क्योंकि इस संसार का नियम ऐसा है कि 'स्पेस' ( जगह) बदलने पर फर्क होता ही है। प्रश्नकर्ता: आम तौर पर कहते हैं न कि ये सब परिवार होते हैं न, वे एक वंश परंपरा से इकट्ठा होते हैं। दादाश्री : हाँ, वे सभी हमारी जान पहचानवाले ही होते हैं। अपना ही सर्कल, सब साथ रहनेवाले, समान गुणवाले हैं, इसलिए राग-द्वेष के कारण वहाँ पर जन्म लेते हैं और हिसाब चुकाने के लिए इकट्ठा होते हैं। वास्तव में आँखों से ऐसा दिखाई देता है, पर वह भ्रांति से है और ज्ञान से ऐसा नहीं है। ६४ हैन? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : यह जो जन्म लेनेवाला है, वह अपने कर्मों से जन्म लेता दादाश्री : निश्चय ही, वह गोरा है या काला है, नाटा है या लम्बा है, वह उसके कर्मों से है। यह तो लोगों ने इन आँखो से देखा कि बेटे की नाक तो एक्ज़ेक्ट वैसी ही दिखती है, इसलिए पिता के गुण ही पुत्र में उतरे हैं। तब बाप संसार में कृष्ण भगवान हुए, तो क्या बेटा भी कृष्ण भगवान हो गया? ऐसे तो कईं कृष्ण भगवान हो गए। सभी प्रकट पुरुष कृष्ण भगवान ही कहलाते हैं। लेकिन उनका एक भी लड़का कृष्ण भगवान हुआ ? अतः यह तो नासमझी की बातें हैं !! अगर पिता के गुण पुत्र में आते हों, तब तो सभी बच्चों में समान रूप से आने चाहिए। यह तो पिता के जो पूर्व जन्म के पहचानवाले हैं, सिर्फ उनके गुण मिलते हैं। तुम्हारी पहचानवाले सब कैसे होते हैं? तुम्हारी बुद्धि से मिलते हैं, तुम्हारे आशय से मिलते हैं। जो तुमसे मिलते-जुलते हों, वे इस जन्म में फिर बच्चे होंगे। अर्थात् उनके गुण तुमसे मिलते हैं, पर वास्तव में तो उनके अपने गुण ही धारण करते हैं। सायन्टिस्टों (वैज्ञानिकों) को ऐसा लगता है कि ये गुण परमाणु में से आते हैं लेकिन वह तो अपने खुद के ही गुण धारण करता है। फिर कोई बुरा, नालायक हो तो शराबी भी निकलता है। क्योंकि जैसे जैसे संयोग उसने जमा किए हैं, ऐसा ही होता है। किसी को विरासत में कुछ भी नहीं मिलता। अर्थात् विरासत केवल दिखावा है। शेष, पूर्वजन्म में जो उनकी पहचानवाले थे, वे ही आये हैं। प्रश्नकर्ता : यानी जो हिसाब चुकता करने के हैं, ऋणानुबंध चुकाने हैं, वे हिसाब चुकता करके पूरे हो जाते हैं? दादाश्री : हाँ, वे सभी चुकता हो जाते हैं। इसलिए मुझे यहाँ पर यह विज्ञान खोलना पड़ा कि अरे ! उसमें बाप का क्या दोष है? तू क्रोधी, तेरा बाप क्रोधी, मगर यह तेरा भाई ठंडा क्यों है? अगर तुझ में तेरे बाप का गुण उत्पन्न हुआ हो तो तेरा यह भाई ठंडा क्यों है? यह सब नहीं

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