Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 38
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार तो कोई परेशानी नहीं है। तुम्हारी बही में खाता ही नहीं है, है, नहीं? इसलिए परम सुखी ही हो आप। बहुत अच्छा एक भी संतान नहीं हो और लड़के का जन्म हो तो वह लड़का बाप को बहुत खुश करता है, उसे बहुत आनंद करवाता है। लेकिन जब वह जाए तब रूलाता भी उतना ही है। इसलिए हमें इतना जान लेना है कि वह आया है, तो जाए तब क्या क्या होगा? इसलिए आज से हँसना ही मत, तो बाद में मुश्किल ही नहीं आए न! बच्चे तो हमारे राग-द्वेष का हिसाब होते हैं। पैसे का हिसाब नहीं, राग-द्वेष के ऋणानुबंध होते हैं। राग-द्वेष का हिसाब चुकाने के लिए ये बच्चे बाप का तेल निकालते हैं। कोल्हू में पेलते हैं। श्रेणिक राजा का भी बेटा था और वह उन्हें रोज फटकारता था, जेल में भी डाल दिया था। कहते हैं कि मेरे बच्चे नहीं हैं। बच्चों का क्या करना है? ऐसे बच्चे हों जो परेशान करें वे किस काम के ? उसके बजाय तो सेर मीट्टी न हो वह अच्छा और किसी जन्म में तुझे सेर मीट्टी नहीं थी? अब यह मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है, तो मुए, सीधा मर न ! और कुछ मोक्ष का साधन खोज निकाल और अपना काम निकाल ले। प्रश्नकर्ता: पिछले साल इनका एक बच्चा गुज़र गया न, तब कहते हैं कि मुझे बहुत दु:ख हुआ और मानसिक रूप से बहुत सहन करना पड़ा। इससे हमें ऐसा जानने को मन करता है कि पिछले जन्म में हमने ऐसा क्या किया होगा, कि जिसकी वजह से ऐसा हुआ ? दादाश्री : ऐसा है न कि जिसका जितना हिसाब उतना ही हमारे साथ वह रहता है, फिर हिसाब पूरा होते ही हमारी बही में से अलग हो जाता है। बस इतना ही इसका नियम है। प्रश्नकर्ता: कोई बच्चा पैदा होने के बाद तुरन्त मर जाए, तब क्या उसका उतना ही लेन-देन होता है? दादाश्री : माता-पिता के साथ जितना राग-द्वेष का हिसाब है, उतना ५८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पूरा हो गया, परिणाम स्वरूप माता-पिता को रुलाकर जाता है, बहुत रुलाता है, सिर भी तुड़वाता है। लड़का डॉक्टर का खर्च भी करवाता है, सब कुछ करवा कर चला जाता है! बच्चों की मृत्यु के बाद उनके लिए चिंता करने से उनको दुःख झेलना पड़ता है। हमारे लोग अज्ञानता के कारण ऐसा सब करते हैं। इसलिए तुम्हें यथार्थ रूप से समझकर शांति से रहना चाहिए। आखिर बेवजह माथापच्ची करें उसका क्या अर्थ है? बच्चे कहाँ नहीं मरते ? यह तो सांसारिक ऋणानुबंध हैं। हिसाबी लेन-देन है। हमारे भी बच्चा-बच्ची थे, पर वे मर गए। मेहमान आया था वह मेहमान गया, वह अपना कहाँ है? क्या हमें भी एक दिन नहीं जाना? हमें तो जो जीवित हैं उन्हें शांति देनी है। जो गया सो तो गया । उसे याद करना भी छोड़ दो। यहाँ जीवित हों, जितने हमारे आश्रित हों, उन्हें शांति दें, उतना हमारा फर्ज यह तो गए हुए को याद करते हैं और यहाँ वालों को शांति नहीं दे सकते, यह कैसा ? अतः आप सभी फर्ज़ भूल रहे हैं। तुम्हें ऐसा लगता है? गया सो गया। जेब में से लाख रुपये कहीं गिर जाएँ और फिर हाथ न आयें तब हमें क्या करना चाहिए? क्या सिर पटकना चाहिए? प्रश्नकर्ता: उसे भूल जाएँ। दादाश्री : हाँ, अतः यह सब नासमझी है। सचमुच हम बाप-बेटे ही नहीं। बेटा मर जाए तब चिंता करने जैसा है ही नहीं। वास्तव में संसार में चिंता करने जैसी हो तो वह माता-पिता की मृत्यु हो, तभी मन में चिंता होनी चाहिए। लड़का मर जाए तो लड़के के साथ हमारा क्या लेना-देना? माता-पिता ने तो हम पर उपकार किया था। माता ने तो हमें नौ महीने पेट में रखा, फिर बड़ा किया। पिता ने पढ़ाई के लिए फ़ीस दी हैं और बहुत कुछ दिया है। आपको मेरी बात समझ में आती है? इसलिए जब याद आये तब इतना बोलना कि 'हे दादा भगवान, यह लड़का आपको सौंप दिया!' इस से आपको समाधान होगा। तुम्हारे बेटे को याद कर के उसकी आत्मा

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