Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 19
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता: आपने कहा कि सोलह साल की उम्र के बाद बच्चे का फ्रेन्ड होना, तो क्या सोलह साल पहले भी उसके साथ फ्रेन्डशिप ही रखनी चाहिए? दादाश्री : तब तो बहुत अच्छा। लेकिन दस-ग्यारह साल की उम्र तक हम फ्रेन्डशिप नहीं रख सकते। तब तक उससे भूलचूक होती है। इसलिए उसे समझाना चाहिए। एकाध चपत भी लगानी पड़ती है, दसग्यारह साल तक। वह बाप की मूंछ खींच रहा हो तो चपत भी लगानी पड़ती है। बाप बनने गए थे न, वे तो मार खाकर मर गए। प्रत्येक मनुष्य के द्वारा अपने बच्चों को सुधारने के सभी प्रयत्न होने चाहिए। लेकिन प्रयत्न सफल होने चाहिए। बाप हुआ और बच्चे को सुधारने के लिए वह बापपना छोड़ सकता है? 'मै पिता हूँ' क्या यह छोड़ देता है? प्रश्नकर्ता : अगर वह सुधरता है तो अहम् भाव, द्वेष, सब छोड़कर उसे सुधारने के प्रयत्न करने चाहिए? दादाश्री : तुम्हें बाप होने का भाव छोड़ देना होगा। प्रश्नकर्ता : 'यह मेरा पुत्र है' ऐसा नहीं मानें और 'मैं बाप हूँ' ऐसा नहीं मानें? दादाश्री : तो उसके जैसा तो और कुछ भी नहीं। मेरा स्वभाव प्रेम भरा इसलिए ऐसे दो-चार लोग थे, वे मुझे प्रेम से 'दादा' कहते थे। और अन्य सभी तो 'दादा कब से आये हो?' ऐसा ऊपर-ऊपर से पूछते। मैं कहूँ कि परसों आया। उसके बाद कुछ भी नहीं, दिखावटी सलाम! लेकिन वे तो 'रेग्युलर' (नियम से) सलाम करते थे। मैंने खोज निकाला कि वे मुझे 'दादा' कहें तब मैं मन से उन्हें 'दादा' मानूँ। वे मुझे जब 'दादा' कहें तब मैं मन से उन्हें 'दादा' कहूँ अर्थात् प्लसमाइनस करता रहूँ, भेद उड़ाता रहूँ। मैं उन्हें मन से दादा कहता इसलिए मेरा मन बहुत अच्छा रहने लगा, हलका होने लगा। वैसे वैसे उन्हें 'अट्रेक्शन' (लगाव) ज़्यादा होने लगा। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ___मैं उन्हें मन से 'दादा' मानता इसलिए उनके मन को मेरी बात पहुँचती न! उन्हें लगे कि 'अहोहो! उन्हें मुझ पर कितना भाव है!' यह गौर से समझने योग्य बात है। ऐसी सूक्ष्म बात कभी ही निकलती है, तो यह आपको बता देता हूँ। यदि तुम्हें ऐसा करना आए तो कल्याण हो जाए ऐसा है। फिर क्या किया? ऐसा व्यवहार हमेशा चलता इसलिए उनके मन में ऐसा ही लगता कि दादा जैसा कोई और नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : बाप ऐसा सोचता है कि लड़का एडजस्ट (अनुकूल) क्यों नहीं होता? दादाश्री: यह तो उसका बापपना है इसलिए। भान ही नहीं है। बापपना यानी बेभान-पना। जहाँ 'पना' शब्द आया वहाँ बेहोशी है। प्रश्नकर्ता : यह तो उल्टा बाप कहता है कि 'मैं तेरा बाप हूँ, तू मेरा कहा नहीं मानता? मेरा मान नहीं रखता?' दादाश्री : 'तुझे मालूम नहीं, मैं तेरा बाप लगता हूँ?' एक आदमी को तो मैंने ऐसा कहते सुना था। ये तो किस तरह के घनचक्कर पैदा हुए हैं? ऐसा भी कहना पड़ता है? जो बात सारा संसार जानता है, वह बात भी कहनी पड़ती है? प्रश्नकर्ता : दादा, उसके आगे का डायलोग (संवाद) भी मैंने सुना है कि तुम्हें किस ने कहा था कि हमें पैदा करो! दादाश्री : ऐसा कहें तब हमारी आबरू क्या रह गई फिर? ६. प्रेम से सुधारो नन्हे मुन्नों को प्रश्नकर्ता : उनकी भूल होती हो तो टोकना तो पड़ेगा न? दादाश्री : तब हमें उनसे ऐसा पूछना चाहिए कि यह सब तुम जो करते हो, वह तुम्हें ठीक लगता है? तुमने यह सब सोच-समझ कर किया है? तब यदि वह कहे कि मुझे ठीक नहीं लगता। तो हम कहें कि बेटा तो फिर हमें व्यर्थ क्यों ऐसा करना चाहिए? ऐसा सोच-विचार कर कहो

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