Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार २३ वह गिलास फोड़े तब प्रेम रहता है? तब तो तू चिढ़ता है। इसलिए वह आसक्ति है। बच्चे प्रेम खोजते हैं, लेकिन प्रेम मिलता नहीं। इसलिए फिर उनकी मुश्किलें वे ही जानें, न कह सकें, न सह सकें। आज के जवानों के लिए हमारे पास रास्ता है। इस जहाज का सुकान (मस्तूल) किस तरह संभालना, इसका मार्गदर्शन मुझे भीतर से मिलता है। मेरे पास ऐसा प्रेम उत्पन्न हुआ है कि जो बढ़े नहीं और घटे भी नहीं। बढ़े-घटे, वह आसक्ति कहलाती है। जो बढ़े-घटे नही वह परमात्म-प्रेम है। सभी प्रेम के वश रहा करते हैं। जिसे सच्चा प्रेम कहते हैं न, वह तो देखने को भी नहीं मिलता। प्रेम जगत् ने देखा ही नहीं। किसी समय ज्ञानीपुरुष अथवा भगवान हों तब प्रेम देख पाते हैं। प्रेम कम-ज्यादा नहीं होता, अनासक्ति होती है। वही प्रेम है, ज्ञानियों का प्रेम ही परमात्मा है। छोटे बच्चों के साथ हमारी खूब जमती है। मेरे साथ फ्रेन्डशिप (मित्रता) करते हैं। अभी जब यहाँ अन्दर आ रहे थे न, तब एक इतनासा बच्चा था, वह लेने आया और बोला कि 'चलिए'। यहाँ आते ही लेने आया। हमारे साथ फ्रेन्डशिप की। तुम तो लाड़ लड़ाते हो। हम लाड़ नहीं लड़ाते, प्रेम करते हैं। प्रश्नकर्ता : यह ज़रा समझाइए न दादाजी, लाड़-लड़ाना और प्रेम करना। कुछ उदाहरण देकर समझाइए। दादाश्री : अरे, एक आदमी ने तो अपने बच्चे को छाती से ऐसा दबाया! दो साल से उसे मिला नहीं था और उठाकर ऐसे दबाया! तब बच्चा बहुत दब गया तो उसके पास कोई चारा नहीं रहा, इसलिए उसने काट लिया। यह तो कोई तरीका है? इन लोगों को तो बाप होना भी नहीं आता! प्रश्नकर्ता : और जो प्रेमवाला हो, वह क्या करता है? दादाश्री : हाँ, वह ऐसे गाल पर हाथ फेरता है, ऐसे कंधा थपथपाता है। इस प्रकार खुश करता है। पर क्या उसे ऐसे दबा देने चाहिए? फिर वह बेचारा साँस न ले पाए तब काट ही लेगा न! नहीं काटेगा, साँस रुके तो? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार और बच्चों को कभी मारना मत। कोई भूलचूक हो तो समझाना ज़रूर, धीरे से माथे पर हाथ फेरकर उन्हें समझाना ज़रूर। प्रेम दें तो बच्चा समझदार होता है। ७. 'विपरीतता ऐसे छूट जाय' क्या कभी ड्रिंक्स (शराब) वगैरह लेते हो? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी। जब घर में झगड़ा होता है तब। यह मैं सत्य कहता हूँ। दादाश्री : बंद कर देना। उससे परवश हो गया! अपने को यह सब नहीं चलता, हमें यह सब नहीं चाहिए। लेना मत त, छना भी मत तू। दादा की आज्ञा है, इसलिए ऐसी चीजों को छना मत। तभी तेरा जीवन अच्छा व्यतीत होगा। क्योंकि अब तुझे उसकी ज़रूरत नहीं होगी। यह चरण विधि आदि सब पढ़ेगा तो तुझे उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी और आनंद भरपूर रहेगा, बहुत आनंद रहेगा। समझ में आया कि नहीं? प्रश्नकर्ता : व्यसन से मुक्त किस प्रकार रहें? दादाश्री : व्यसन से मुक्त होने के लिए 'व्यसन बुरी चीज़ है' ऐसी हमें प्रतीति होनी चाहिए। यह प्रतीति ढीली नहीं होनी चाहिए। अपना निश्चय हिलना नहीं चाहिए। ऐसा हो तो मनुष्य व्यसन से दूर रहता है। 'इसमें कोई हर्ज नहीं' ऐसा कहा तो व्यसन और मज़बूत हो जाता है। प्रश्नकर्ता : लम्बे अरसे तक किसी ने शराब पी हो अथवा 'ड्रग्स' (नशीले पदार्थ) लिए हों, तो कहते हैं उसका असर उसके दिमाग पर पड़ता है। फिर बंद कर दें तो भी उसका असर तो रहता है। तब उन असरों से मुक्त होने के लिए आप क्या कहते हैं? किस प्रकार बाहर निकलें, उसके लिए कोई रास्ता है? दादाश्री : बाद में रिएक्शन आता है उसका। जो सभी परमाणु हैं। वे सभी शुद्ध तो होने चाहिए न ! पीना बंद कर दिया है न? अब उसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61