Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 16
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार १३ दादाश्री : उसमें कोई हर्ज नहीं वह न्यायसंगत है। बहुत समझाना पड़ता है, इसका कारण क्या है? कि तुम खुद समझते नहीं, इसलिए ज्यादा समझाना पड़ता है। समझदार मनुष्य को एक बार समझाना पड़ता है वह हम ही न समझ जाएँ? बहुत समझाते हो, पर बाद में समझते हैं न? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : वह सबसे अच्छा रास्ता है। यह तो मार ठोक कर समझाना चाहते हैं। यूँ बाप बन बैठा, जैसे अब तक दुनिया में कभी कोई बाप ही नहीं हुआ हो! अर्थात् जो समझा-बुझाकर इस तरह काम लेते हैं, उन्हें मुझे अन्क्वालिफाइड (अक्षम) नहीं कहना । 'बाप होना' वह सद्व्यवहार कैसा होना चाहिए? लड़के के साथ दादागीरी तो नहीं, किन्तु सख्ती भी नहीं होनी चाहिए, वह बाप कहलाता है। प्रश्नकर्ता: बच्चे परेशान करें तब बाप को क्या करना चाहिए? तब भी बाप को सख्ती नहीं बरतनी चाहिए? दादाश्री : बच्चे बाप के कारण ही परेशान करते हैं। बाप में नालायकी हो, तभी बच्चे परेशान करते हैं। इस दुनिया का कानून ऐसा ही है। बाप में योग्यता न हो तो बच्चे परेशान किए बगैर नहीं रहते। प्रश्नकर्ता लड़का बाप का कहा न माने तो क्या करें? दादाश्री : 'अपनी भूल है' ऐसा समझकर छोड़ देना! अपनी भूल हो तब नहीं मानते न! बाप होना आया हो, उसका लड़का बात न माने ऐसा होता होगा? पर बाप होना आता ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता: एक बार फादर बन गये तो पिल्ले छोड़ेंगे क्या ? दादाश्री : छोड़ते होंगे क्या? पिल्ले तो सारा जीवन 'डॉग' और 'डॉगीन' दोनों को देखते ही रहते हैं कि ये भौं भौं करे और यह (डॉगीन ) काटती रहे। 'डॉग' भौं भौं किए बिना नहीं रहता। पर आखिर में दोष उस 'डॉग' का ही निकलता है। बच्चे उनकी माँ की ओर होते हैं। इसलिए १४ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार मैंने एक आदमी से कहा था, 'बड़े होकर ये बच्चे तुझे मारेंगे। इसलिए घरवाली के साथ सीधा होकर रहना।' यह तो बच्चे देखते हैं उस समय, उनके बस में न हो तब तक और जब बस में हो तब कोठरी में बन्द कर के पिटाई करते हैं। लोगों के साथ ऐसा हुआ भी है ! लड़के ने उस दिन से मन में ठान लिया होता है कि बड़ा होकर मैं बाप को वापस लौटाऊँगा । मेरा कुछ भी हो लेकिन उनको तो सबक सीखाऊँगा ही ऐसा ठान लेता है। यह भी समझने जैसा है न? प्रश्नकर्ता : अर्थात् पूरा दोष बाप का ही? दादाश्री : बाप का ही! दोष ही बाप का है। बाप में बाप बनने की योग्यता न हो, तभी उसकी पत्नी उसके सामने हो जाती है। बाप में योग्यता नहीं हो तभी ऐसा होता है न! ये तो बड़ी मुश्किल से जैसेतैसे अपना संसार निभाते हैं। लेकिन पत्नी कब तक समाज के डर से डर कर रहे? - प्रश्नकर्ता : क्या हमेशा बाप की ही भूल होती है ? दादाश्री : बाप की ही भूल होती है। उसे बाप होना नहीं आया, इसलिए यह सब बिगड़ गया है। घर में यदि बाप बनना हो, तो उसकी स्त्री उसके पास विषय की भीख माँगे, ऐसी दृष्टि हो तब बाप बन सकता है। प्रश्नकर्ता: बाप घर में रुआब न रखे, बापपना न रखे तब भी उसकी भूल कहलाती है ? दादाश्री : तब तो सब ठीक हो जाए। प्रश्नकर्ता: फिर भी बच्चे बाप का कहा मानेंगे, इसकी क्या गारंटी है? दादाश्री : है न! अपना 'केरेक्टर' (चरित्र) अच्छा हो, तो सारा संसार केरेक्टरवाला (चरित्रवान) है।

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