Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 12
________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार रहा हूँ, वह गलत है, ऐसा उसे ज्ञान होगा। उसे बहुत मारना मत, सिर्फ धीरे से चिमटी भरना। बाप ने बच्चे की मम्मी को बुलाया, तब वह रोटी बेल रही थी। उसने कहा, 'क्या काम है? मैं रोटी बेल रही हूँ।' 'तू यहाँ आ, जल्दी आ, जल्दी आ, जल्दी आ!' वह दौड़ती दौड़ती आकर पूछती है, 'क्या है?' तब वह बोला, 'देख, देख, बेटा कितना होशियार हो गया है ! देख, पैर की एडियाँ ऊँची कर के जेब में से पच्चीस रुपये निकाले।' बच्चा यह देखकर सोचता है, 'अरे! मैंने आज बहुत अच्छा काम किया। ऐसा काम मैं आज सीख गया।' और फिर वह चोर हुआ, तब क्या हो? उसे 'जेब से पैसे निकालना अच्छा है' ऐसा ज्ञान प्रकट हो गया। तुम्हें क्या लगता है? क्यों बोलते नहीं? क्या ऐसा करना चाहिए? ऐसे घनचक्कर कहाँ से पैदा हुए? ये बाप बन बैठे हैं! शर्म नहीं आती? इससे बच्चे को कैसा प्रोत्साहन मिला, यह समझ में आता है? उसने देखा कि मैंने बहुत बड़ा पराक्रम किया! इस प्रकार लुट जाना क्या हमें शोभा देता है? क्या बोलने से बच्चों को 'एन्करेजमेन्ट' (प्रोत्साहन) मिलेगा और क्या बोलने से नुकसान होगा, इतनी समझ तो होनी चाहिए न? ये तो 'अनटेस्टेड फादर' (अयोग्य पिता) और 'अनटेस्टेड मदर' (अयोग्य माता) हैं। बाप मूली और माँ गाजर, बच्चे फिर सेब थोड़े ही होंगे? इसलिए कलियुग के इन माता-पिताओं को यह सब आता ही नहीं और गलत 'एन्करेजमेन्ट' देते हैं। कुछ तो उन्हें ले लेकर घूमते हैं। पत्नी कहती है, 'इसको उठा लो,' तो पति बच्चे को उठा लेता है। क्या करे? यदि वह अकड़वाला हो और न ले तो पत्नी कहेगी, 'क्या मेरे अकेली का है? मिलकर रखने हैं।' ऐसा वैसा कहे तो पति को बच्चे को उठाना पड़ता है, क्या इससे छुटकारा है? कहाँ जाए वो? बच्चों को उठा उठाकर सिनेमा देखने जाना, दौड़धूप करना। फिर बच्चों को संस्कार किस तरह मिलें? एक बैंक मेनेजर ने मुझसे कहा, 'दादाजी, मैंने तो कभी भी वाइफ या बच्चों को एक अक्षर भी बोला नहीं है। चाहे कितनी भी भूल करें, माता-पिता और बच्चों का व्यवहार कुछ भी करे पर मैं बोलता नहीं हूँ।' वह ऐसा समझा होगा कि दादाजी मेरी बहुत तारीफ करेंगे। वह क्या आशा करता था समझ में आया न? और मुझे उसके ऊपर बड़ा गुस्सा आया कि तुम्हें किस ने बैंक का मैनेजर बनाया? तुम्हें बाल-बच्चे सम्हालना नहीं आता और बीबी सम्हालना नहीं आता! तब वह तो घबरा गया बेचारा। उल्टा मैंने उसे कहा, 'तुम अंतिम कक्षा के बेकार मनुष्य हो! तुम इस दुनिया में किसी काम के नहीं हो!' वह आदमी मन में समझता था कि मैं ऐसा कहूँगा तो 'दादा' मुझे बड़ा इनाम देंगे। पगले, इसका इनाम होता होगा? बच्चा गलत करता हो तब हमें 'तूने ऐसा क्यों किया? फिर ऐसा मत करना।' इस तरह नाटकीय रूप से कहना चाहिए; नहीं तो बच्चा समझेगा कि वह जो कुछ कर रहा है वह 'करेक्ट' (सही) ही है, क्योंकि पिता ने 'एक्सेप्ट' (स्वीकार किया है। ऐसा नहीं बोलने के कारण ही घरवाले मुँह फट हो गये। सबकुछ कहना, मगर नाटकीय! बच्चों को रात को बिठाकर समझाओ, बातचीत करो। घर के सभी कोनों से कूड़ा बुहारना पड़ेगा न? बच्चों को थोड़ा हिलाने की जरूरत है। वैसे संस्कार तो होते ही हैं, पर हिलाना पड़ता है। उनको हिलाने में कुछ गुनाह है? नन्हें बेटे-बेटियों को समझाना कि सुबह नहा-धोकर भगवान की पूजा करो और रोज़ संक्षिप्त में बोलो कि 'मुझे और सारे जगत् को सद्बुद्धि दो, जगत् का कल्याण करो।' इतना बोलें तो उनको संस्कार मिले हैं, ऐसा कहलाएगा और माता-पिता का कर्म-बंध छूट जाएगा। दूसरा, तुम्हें बच्चों से 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' हर रोज़ बुलवाना चाहिए। हिन्दुस्तान के बच्चे तो इतने सुधर गए हैं, कि सिनेमा भी नहीं जाते। पहले दो-तीन दिन थोड़ा अटपटा लगेगा पर बाद में दो-तीन दिन के बाद अभ्यस्त होने पर, अंदर स्वाद उतरने पर, उल्टे खुद याद करेंगे। २. फर्ज़ के गीत क्या गाना? स्वैच्छिक कार्य का इनाम होता है। एक भाई फर्ज़ के तौर पर किए गए कार्य का इनाम खोजना चाहते थे! सारा संसार इनाम खोज रहा है

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