Book Title: Mahavirashtak Pravachan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 4
________________ प्राक्कथन भक्त कवि भागचन्द्र जी ने भगवान् महावीर पर एक लघु स्तोत्र की रचना की है, जिसका नाम है-श्री महावीराष्टक ! भागचन्द्रजी दिगंबर परम्परा के विद्वान् हैं। उन्होंने अपनी उसी परम्परानुसार इस स्तोत्र की संरचना की। श्वेताम्बरपरम्परा भगवान् महावीर का विवाह स्वीकार करती है और भगवान् के एक पुत्री भी थी किन्तु दिगंबर-परम्परा भगवान् महावीर के विवाह और पुत्री-जन्म को स्वीकार नहीं करती। इस विवाद को छोड़कर शेष स्तोत्र की गाथाएँ भक्ति-भावना से संपूरित हैं। स्तोत्र-स्तुति साहित्य में अष्टकों का विशिष्ट स्थान है। अनेक जैनाचार्यों ने अष्टक लिखे। उन आचार्यों में आचार्य हरिभद्र सूरि प्रसिद्ध हैं जिन्होंने ३२ अष्टकों की रचना की है। उसमें भगवान महावीर का भी एक अष्टक है जो आर्याछन्द में निबद्ध है। भागचन्द्रजी ने शिखरणी जैसे बड़े छन्द में भगवान् महावीर की स्तुति की है। इनकी शैली सरस, सुन्दर और भावपूर्ण है । कहीं पर भी समासान्त पदों का प्रयोग नहीं किया है अत: इस स्तोत्र में प्रसाद गुण विशेषरूपेण प्रस्फुटित हुआ है। स्तोत्र-परम्परा के अंतर्गत आचार्य मानतङ्ग तथा आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने भी महान् स्तोत्रों की रचना की। अंतर यह है कि आचार्य मानतुंग ने भगवान् ऋषभदेव पर स्तोत्र-रचना की वह अत्यंत लोकप्रिय हुई। यह स्तोत्र भक्ति प्रधान है। अपने आराध्य के प्रति भक्त कवि मानतुंग ने भावना की जो मधुर गंगा प्रवाहित की है वह वस्तुत: प्रशंसनीय है। इसका नित्यप्रति पाठ भी किया जाता है एवं दिगंबर-श्वेतांबर-परंपरा में समानरूपेण आदत है। सिद्धसेन दिवाकर ने भगवान् पार्श्वनाथ को अपने स्तोत्र का विषय बनाया है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर अपने युग के महान् दार्शनिक और तर्कवादी थे। अत: भक्तामर स्तोत्र की अपेक्षा कल्याण-मन्दिर अधिक गंभीर है और भाषा की अपेक्षा से भी क्लिष्ट है। अत: सामान्य जनता में उतना लोकप्रिय नहीं बन पाया जितना कि भक्तामर ! पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज ने दोनों स्तोत्रों पर हिन्दी में विशेष व्याख्या की है। ( iii ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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