Book Title: Mahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 9
________________ लेखक की कलम से कथा-कहानी साहित्य की एक प्रमुख विधा है, जो सबसे अधिक लोकप्रिय और मनमोहक है। कला के क्षेत्र मे कहानी से बढकर अभिव्यक्ति का इतना सुन्दर एव सरस साधन अन्य नही है । कहानी विश्व के सर्वोत्कृष्ट काव्य की जननी है और ससार का सर्वश्रेष्ठ सरस साहित्य है । कहानी के प्रति मानव का सहज व स्वाभाविक आकर्षण है । फलत जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नही जिसमे कहानी की मधुरिमा अभिव्यजित न हुई हो। सच तो यह है कि मानव का जीवन भी एक कहानी है, जिसका प्रारम्भ जन्म के साथ होता है और मृत्यु के साथ अवसान होता है। कहानी कहने और सुनने की अभीप्सा मानव मे आदि काल से रही है । वेद, उपनिषद, महाभारत, आगम और त्रिपिटक की हजारो-लाखो कहानियाँ इस बात की साक्षी है कि मानव कितने चाव से कहानी को कहता व सुनता आया है और उसके माध्यम से धर्म और दर्शन, नीति और सदाचार, बौद्धिक चतुराई और प्रवल-पराक्रम परिवार और समाज सम्बन्धी गहन समस्याओ को सुन्दर रीति से सुलझाता रहा है । श्रमण भगवान महावीर जहाँ धर्म-दर्शन व अध्यात्म के गम्भीर प्ररूपक थे वहाँ एक मफल कथाकार भी थे । वे अपने प्रवचनो मे जहाँ दार्शनिक विषयो की गम्भीर चर्चा-वार्ता करते थे वहाँ लघु-रूपको एव कथाओ का भी प्रयोग करते थे। प्राचीन निर्देशिका मे परिज्ञात होता है कि 'नायाधम्म कहा' मे किसी समय भगवान महावीर द्वारा कथित हजारो रूपक व कथाओ का सकलन था ।। इसी प्रकार उत्तराध्ययन, विपाक आदि मे भी विपुल कथाये थी। मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग भी धर्म कथा के एक विशिष्ट एव महत्वपूर्ण ग्रन्थ थे । उनका सक्षिप्त परिचय समवायाङ्ग व नन्दी सूत्र मे इस प्रकार है _ “दृष्टिवाद का एक विभाग अनुयोग है । उसके दो विभाग है-मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग । मूल प्रथमानुयोग मे अरिहत भगवन्तो के पूर्वभव, च्यवन, जन्म, जन्माभिगेक, राज्यप्राप्ति, दीक्षा-तपस्या, केवल-ज्ञान, धर्म-प्रवर्तन, सहनन, २. (क) समवायाङ्ग १४७ (ख) नन्दी सूत्र ५६, पृष्ठ

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