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आर्य रक्षित ने अनुयोग के आधार पर आगमो को चार भागो मे विभक्त किया | उसमे प्रथमानुयोग भी एक विभाग था । दिगम्बर साहित्य मे धर्म कथानुयोग को ही पथमानुयोग कहा है । प्रथमानुयोग मे क्या-क्या वर्णन है उसका भी उन्होने निर्देश किया है । "
बताया जा चुका है कि भगवान महावीर सफल कथाकार थे । उनके द्वारा कही गई कथाएँ आज भी आगम साहित्य में उपलब्ध होती है । कुछ कहानियाँ ऐसी भी है जो भिन्न नामो से या रूपान्तर से वैदिक व बौद्ध साहित्य में ही उपलब्ध नही होती, अपितु विदेशी साहित्य मे भी मिलती है । उदाहरणार्थ — ज्ञाताधर्म कथा की ७वी चावल के पांच दाने वाली कथा कुछ रूपान्तर के साथ वौद्धो के सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु तथा बाइबिल १३ मे भी प्राप्त होती है। इसी प्रकार जिनपाल और जिनरक्षित १४ की कहानी वलाहस्स जातक १५ व दिव्यावदान मे नामो के हेरफेर के साथ कही गई है । उत्तराध्ययन के बारहवे अध्ययन हरिकेशबल की कथावस्तु मातङ्ग जातक मे मिलती है । १६ तेरहवे अध्ययन चित्तसम्भूत १७ की कथावस्तु चित्तसम्भूत जातक मे प्राप्त होती है । चौदहवे अध्ययन इषुकार की कथा हत्थिपाल जातक' महाभारत के शान्तिपर्व १६ मे उपलब्ध होती है । उत्तराध्ययन के नौवे अध्ययन 'नमि प्रव्रज्या की आशिक तुलना महाजन जातक२० तथा महाभारत के शान्तिपर्व २१ से होती है । इस प्रकार महावीर के कथा साहित्य का अनुशीलन- परिशीलन करने से स्पष्ट परिज्ञात होता है कि ये कथाएँ आदिकाल से ही एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय मे, एक देश मे दूसरे देश मे यात्रा करती रही है । कहानियो की यह विश्व यात्रा उनके शाश्वत और सुन्दर रूप की साक्षी दे रही है, जिस पर सदा ही जन-मानस मुग्ध होता रहा है।
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मूल आगम साहित्य मे कथा साहित्य का वर्गीकरण अर्थकथा, धर्मकथा और
११ (क) साहित्य और संस्कृति, पृ० १६
१२ (ख) अगपण्णत्ती -- द्वितीय अधिकार गा० ३५-३७ दि० आचार्य
(ख) श्रुत स्कन्ध गा० ३१, आचार्य ब्रह्म हेमचन्द्र
१३ सेन्ट मेथ्यू की सुवार्ता २५, सेन्ट ल्युक की सुवार्ता १६
१४ ज्ञाताधर्म कथा
१५ वलाहस्म जातक, पृ० १८६
१६ जातक (चतुर्थ खण्ड ) ४६७ मातङ्ग जातक, पृ० ५८३-०७ १७ जातक (चतुर्थ खण्ड ) ४९८ चित्तसम्भूत जातक, पृ० ५६८- ६०० १८ हत्थिपाल जातक ५०६
१६ शान्ति पर्व, अध्याय १७५, एव २७७
२० महाजन जातक ५३६ तथा सोनक जातक स० ५२६
२१ महाभारत शान्ति पर्व अ० १७८ एव २७६