Book Title: Mahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 12
________________ कामकथा के त्व में किया गया है । परवर्ती साहित्य में विपय, पात्र, शैली और भाषा की दृष्टि से भेद-प्रभेद किये गये है। आचार्य हरिभद्र ने विपय की दृष्टि मे अर्थक्रया, कामकथा, धर्मकया और मिक्या ये वार भेद किये है। ३ विद्यादि के द्वारा अर्थ प्राप्त करने की जो कया है, वह अर्थकथा है। ४ जिस शृङ्गान्पूर्ण वर्णन का श्रवण कर हृदय मे विकार भावनाएँ उद्बुद ही वह काम क्या है। और जिसमे अर्थ व काम दोनो भावनाएं जाग्रत हो वह मिश्रकथा है । ये तीनो प्रकार की कथाएँ आध्यात्मिक अर्थात् सयमी जीवन को दूपित करन वाली हान में विक्या है। '६ विकया के स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा और राजकथा ये चार भेद और भी मिलते हैं। जन श्रम के लिए विकया करने का निषेध किया है । उसे वही कया करनी चाहिए जिम्को श्रवण कर श्रोता के अन्तर्मानस मे वैराग्य का पयोधि उछाले मारने लंग, विकार भावनाए नष्ट हो एव सयम की भावनाएं जाग्रत हो । २७ तप सयमरूपी मद्गुको धारण करने वाले परमार्थी महापुरुपो की कथा, जो सम्पूर्ण जीवो का दिन करना है, वह धर्मकया कहलाती है । २८ पागधार मे दिव्य, मानुप और दिव्यमानुप ये तीन भेद कथा के fr । जिा याओ में दिव्य लोक में रहने वाले देवो के क्रिया-कलापो का fr77 और टमी के आधार मे कथावस्तु का निर्माण हो, वे दिव्य कथाएँ है। मापार मानव लोक में रहते है। उनके चरित्र में मानवता का पूर्ण नगरपिाया के पात्र मानवता के प्रतिनिधि होते है। किसी-किसी मरमेमे मनुष्यो का चित्रण भी होता है जिनका चरिय उपादेय नही हना दिनमानुपी व या अत्यन्त मुन्दर कया होती है । कथानक का गुम्फन कतात्मक है। चग्यि और घटना, परिस्थितियो का विशद् व मार्मिक चित्रण हास्य-व्यग्य का -११-१ ३ ) दावातिर हाग्निद्रीया वृति गा० १८८, पृ० २१२ ( 5 च कहा, याकोबी मम्फरण, पृ० २ ... जेन्द्र ठार भाग :, पृ० ८०० . .. गजेन्द्र रेप नग ८०२, गा० २१९

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