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महावीर-वाणी
भाग : 1
एक बच्चे ने अपने पड़ौसी बच्चे से कहा कि क्या इस नासमझ बूढ़ी को हम असली राज बता दें? मे वी टैल हर दि रियल सीक्रेट, दिस पुअर ओल्ड लेडी। इसको अभी तक पता नहीं इस गरीब को, यह अभी स्टार्क पक्षी से समझ रही है कि बच्चे आते हैं।
चारों तरफ की हवा, चारों तरफ का वातावरण बहुत छोटे-छोटे बच्चों के मन में एक मानसिक कामातुरता को जगा देता है। फिर यह मानसिक कामातुरता उनके ऊपर हावी हो जाती है, यह जीवनभर पीछा करती है। और उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि जो बायोलाजिकल अर्ज थी, वह जो जैविक वासना थी, वह उठ ही नहीं पायी, या जब उठी तब उन्हें पता नहीं चला। और तब एक अदभुत घटना घटेगी, और वह अदभुत घटना यह है कि वे कभी तृप्त न होंगे। क्योंकि मानसिक कामवासना कभी तप्त नहीं हो सकती है, जो वास्तविक नहीं है वह तृप्त नहीं हो सकता। असली भूख तृप्त हो सकती है; झूठी भूख तृप्त नहीं हो सकती। इसलिए वासनाएं तो तृप्त हो सकती हैं लेकिन हमारे द्वारा जो कल्टीवेटेड डिजायर्स हैं, हमने ही जो आयोजन कर ली हैं वासनाएं, वे कभी तृप्त नहीं हो सकतीं। ___ इसलिए पशु-पक्षी, वे भी वासनाओं में जीते हैं, लेकिन हमारे जैसे तनावग्रस्त नहीं हैं। कोई तनाव नहीं दिखाई पड़ता उनमें । गाय की आंख में झांककर देखिए, वह कोई निर्वासना को उपलब्ध नहीं हो गयी है, कोई ऋषि-मुनि नहीं हो गई है, कोई तीर्थंकर नहीं हो गयी है, पर उसकी आंखों में वही सरलता होती है जो तीर्थंकर की आंखों में होती है। बात क्या है? वह तो वासना में जी रही है। लेकिन फिर भी उसकी वासना प्राकृतिक है। प्राकृतिक वासना तनाव नहीं लाती है। ऊपर नहीं ले जा सकती प्राकृतिक वासना, लेकिन नीचे भी नहीं गिराती। ऊपर जाना हो तो प्राकृतिक वासना से ऊपर उठना होता है। लेकिन अगर नीचे गिरना हो तो प्राकतिक वासना के ऊपर अप्राकृतिक वासना को स्थापित करना होता है। __तो अनशन को महावीर ने पहले कहा था कि झूठी भूख टूट जाए, असली भूख का पता चल जाए, जब रोया-रोयां पुकारने लगे।
आपको प्यास लगती है। जरूरी नहीं है कि वह प्यास असली हो। हो सकता है अखबार में कोके का ऐडवरटाइजमेंट देखकर लगी हो। जरूरी नहीं है कि वह प्यास वास्तविक हो। अखबार में देखकर भी-लिव्वा लिटिल हाट... लग गयी हो। वैज्ञानिक, विशेषकर
पन विशेषज्ञ भली-भांति जानते हैं कि आपको झूठी प्यासे पकड़ायी जा सकती हैं और वे आपको झूठी प्यासे पकड़ा रहे हैं। आज जमीन पर जितनी चीजें बिक रही हैं, उनकी कोई जरूरत नहीं है। आज करीब-करीब दुनिया की पचास प्रतिशत इंडस्ट्री उन जरूरतों को पूरा करने में लगी हैं जो जरूरतें हैं ही नहीं। पर वे पैदा की जा सकती हैं। आदमी को राजी किया जा सकता है कि जरूरतें हैं। और एक दफा उसके मन में खयाल आ जाए कि जरूरत है, तो जरूरत बन जाती है।
प्यास तो आपको पता ही नहीं है, वह तो कभी रेगिस्तान में कल्पना करें कि किसी रेगिस्तान में भटक गए हैं आप। पानी का कोई पता नहीं है। तब आपको प्यास लगेगी, वह आपके रोएं-रोएं की प्यास होगी। वह आपके शरीर का कण-कण मांगेगा। वह मानसिक नहीं हो सकता, वह किसी अखबार के विज्ञापन को पढ़कर नहीं लगी होगी। तो अनशन आपके भीतर वास्तविक को उघाड़ने में सहयोगी होगा। और जब वास्तविक उघड़ जाए तो महावीर कहते हैं, ऊणोदरी। जब वास्तविक उघड़ जाए तो वास्तविक से कम लेना। जितनी वास्तविक-अवास्तविक भूख को तो पूरा करना ही मत, वह तो खतरनाक है। वास्तविक भूख का जब पता चल जाए तब वास्तविक भूख से भी थोड़ा कम लेना, थोड़ी जगह खाली रखना। इस खाली रखने में क्या राज हो सकता है? आदमी के मन के नियम समझना जरूरी है।
हमारे मन के नियम ऐसे हैं कि हम जब भी कोई काम में लगते हैं. या किसी वासना की तप्ति में या किसी भख की तप्ति में लगते हैं, तब एक सीमा हम पार करते हैं। वहां तक भूख या वासना ऐच्छिक होती है, वालंटरी होती है। उस सीमा के बाद नानवालंटरी
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