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महावीर-वाणी
भाग : 1
बार बहुत गहरी उलझन सुलझ जाती है। और शाक ट्रीटमेंट का कुल अर्थ इतना ही है कि आपकी चेतना और आपके मन का सेतु क्षणभर को टूट जाए। उस सेतु के टूटते ही आपके भीतर की सारी व्यवस्था जैसी कल तक थी रुग्ण, वह अव्यवस्थित हो जाती है, अराजक हो जाती है। और नयी व्यवस्था कोई भी रुग्ण नहीं बनाना चाहता। इसलिए शाक ट्रीटमेंट का कुल भरोसा इतना है कि एक बार पुरानी व्यवस्था का ढांचा टूट जाए तो आप फिर शायद उस ढांचे को न बना सकेंगे।
सुना है मैंने कि एक बहुत बड़े मनोचिकित्सक के पास एक रुग्ण कैथलिक नन, कैथलिक साध्वी को लाया गया था। छह महीने से निरंतर उसे हिचकी आ रही थी, वह बंद नहीं होती थी। वह नींद में भी चलती रहती थी। सारी चिकित्सा, सारे उपाय कर लिए गए थे, वह हिचकी बंद नहीं हो रही थी। चिकित्सक थक गए थे और उन्होंने कहा-अब हमारे पास कोई उपाय नहीं है। शायद मनस चिकित्सक कुछ कर सकें। तो मनस चिकित्सक के पास लाया गया। बहुत लोग उस साध्वी को माननेवाले थे। आदर करने वाले थे, वे सब उसके साथ आए थे। वह साध्वी प्रभु का भजन करती हुई भीतर प्रविष्ट हुई। वह निरंतर प्रभु का स्मरण करती रहती थी। चिकित्सक ने पता नहीं उससे क्या कहा कि दो ही क्षण बाद वह रोती हुई बाहर वापस लौटी। उसके भक्त देखकर हैरान हुए कि वह एक क्षण में ही रोती हुई वापस आ गई। रो रही है ! भगवान का छह महीने का स्मरण जो नहीं कर सका था, वह हो गया है। रो तो जरूर रही है, लेकिन हिचकी बंद हो गई है। ___ पीछे से चिकित्सक आया। वह तो साध्वी दौड़कर बाहर निकल गई। उसके भक्तों ने पूछा-आपने ऐसा क्या कहा कि उसको इतनी पीड़ा पहुंची? चिकित्सक ने कहा कि मैंने उससे कहा- हिचकी तो कुछ भी नहीं है, यू आर प्रेगनेंट, तुम गर्भवती हो। अब कैथलिक नन, कैथलिक साध्वी गर्भवती हो, इससे बड़ा शाक नहीं हो सकता। उसके भक्तों ने कहा-आप यह क्या कह रहे हैं? उस चिकित्सक ने कहा---तुम घबराओ मत, इसके अतिरिक्त हिचकी बन्द नहीं हो सकती थी। बिजली के शाक को भी वह महिला झेल गयी। लेकिन अब हिचकी बंद हो गयी। हुआ क्या? __ कैथलिक नन, आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर प्रवेश करती है। वह गर्भिणी है, भारी धक्का लगा। मन और चेतना का जो संबंध
था, चेतना और शरीर का जो संबंध सेतु था, वह एकदम टूट गया। एक क्षण को भी वह टूट गया तो हिचकी बन्द हो गयी, क्योंकि हिचकी की अपनी व्यवस्था थी। वह सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी। हिचकी लेने के लिए भी सुविधा चाहिए, वह सुविधा न रही। हिचकी का जो पुराना जाल था, छह महीने से निश्चित, वह अब कारगर न रहा। शरीर वही है, हिचकी कैसे खो गई! कोई दवा नहीं दी गई, कोई इलाज नहीं किया गया है, हिचकी कैसे खो गई! मनोचिकित्सक कहते हैं कि अगर चेतना और मन के संबंध में कहीं भी, जरा-सा भेद पड़ जाए एक क्षण के लिए भी तो आदमी का व्यक्तित्व दूसरा हो जाता है। वह पुराना ढांचा टूट जाता है। रस-परित्याग उस ढांचे को तोड़ने की प्रक्रिया है। __ वस्तु में रस नहीं होता, सिर्फ रस का निमित्त होता है। इसे हम ऐसा समझें तो आसानी हो जाएगी। आप इस कमरे में आए हैं। दीवारें एक रंग की हैं, फर्श दूसरे रंग का है, कुर्सियां तीसरे रंग की हैं, अलग-अलग लोग अलग-अलग रंगों के कपड़े पहने हुए हैं। स्वभावतः आप सोचते होंगे कि इन सब चीजों में रंग है। और जब हम कमरे के बाहर चले जाएंगे तब भी कर्सियां एक रंग की रहेंगी, दीवार दूसरे रंग की रहेंगी, फर्श तीसरे रंग का रहेगा। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप कोई आधुनिक विज्ञान की किसी भी कीमती खोज से परिचित नहीं हैं। जब इस कमरे में कोई नहीं रह जाएगा तो वस्तुओं में कोई रंग नहीं रह जाता। यह बहुत मन को हैरान करता है। यह बात भरोसे की नहीं मालूम पड़ती। हमारा मन होगा कि हम किसी छेद से झांककर देख लें कि रंग रह गया कि नहीं। लेकिन आपने झांककर देखा कि वस्तुओं में रंग शुरू हो जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं—किसी वस्तु में कोई रंग नहीं होता, वस्तु
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