Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 537
________________ मनुष्यत्व : बढ़ते हुए होश की धारा ध्यानपूर्वक देखकर कि इन सवालों से कोई हल नहीं होता, इनको हटाकर महावीर या बुद्ध जैसे व्यक्ति के आकाश का दर्शन श्रद्धा है। दा भी दुर्लभ, और फिर साधना के लिए पुरुषार्थ तो और भी दुर्लभ । फिर यह जो सुना, जिस पर श्रद्धा ले आये, इसके अनुसार जीवन को बदलना और भी दुर्लभ। इसलिए महावीर कहते हैं, ये चार चीजें दुर्लभ हैं—मनुष्यत्व, धर्म-श्रवण, श्रद्धा, पुरुषार्थ । क्योंकि श्रद्धा अगर नपुंसक हो, मानकर बैठी रहेगी, ठीक है, बिलकुल ठीक है। और हम जैसे चल रहे हैं, वैसे ही चलते रहेंगे। तो उस नपुंसक श्रद्धा का कोई भी अर्थ नहीं है। हम बड़े होशियार हैं, हमारी होशियारी का कोई हिसाब नहीं है। हम इतने होशियार हैं कि अपने ही को धोखा दे जाते हैं। दूसरे को धोखा देनेवाले को हम होशियार कहते हैं। हम इतने होशियार हैं, अपने को धोखा दे जाते हैं। हम कहते हैं, मानते तो बिलकुल हैं आपकी बात। और कभी न कभी करेंगे, लेकिन अभी नहीं। हम कहते हैं, मोक्ष तो जाना है, लेकिन अभी नहीं। निर्वाण चाहिए, लेकिन जरा ठहरें, जरा रुकें। आचरण तो अभी होगा, आशा सदा कल पर छोड़ी जा सकती है। आचरण अभी होगा, और अभी के अतिरिक्त हमारे पास कोई भी समय नहीं है; यही क्षण, अगले क्षण का कोई भरोसा नहीं है। जो अगले क्षण पर छोड़ता है वह मौत पर छोड़ रहा है। जो इस क्षण कर लेता है वह जीवन का उपयोग कर रहा है। इसलिए महावीर कहते हैं, पुरुषार्थ, जो ठीक लगे उसे कर लेने की क्षमता, साहस, छलांग। क्योंकि इस करने का मतलब यह है, हम खतरे में उतर रहे हैं। पता नहीं क्या होगा? ___ लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, संन्यास तो ले लें, संन्यास में तो चले जाये लेकिन फिर क्या होगा? मैं उनसे कहता हूं, जाओ और देखो। क्योंकि अगर हिम्मतवर हो और कुछ न हो तो वापस लौट जाना। डर क्या है? फिर वे कहते हैं, वापस लौट जाना? उसमें भी डर लगता है, कि लोग क्या कहेंगे? अभी भी लोग क्या कहेंगे कि संन्यास लिया? और अगर कुछ न हुआ, वापस लौटे तो लोग क्या कहेंगे? लोग कौन हैं ये? इन लोगों ने क्या दिया, इन लोगों से क्या संबंध है? नहीं, लोग बहाना हैं, अपने को बचाने की तरकीबें हैं, एक्सक्यूजेज हैं। लोगों के नाम से हम अपने को बचा लेते हैं और सोचते हैं कि आज नहीं कल, कल नहीं परसों, कभी न कभी, टालते चले जाते हैं। क्रोध अभी कर लेते हैं, ध्यान कल करेंगे। चोरी अभी कर लेते हैं, संन्यास कभी भी लिया जा सकता है। यह जो वृत्ति है, इसे महावीर कहते हैं-पुरुषार्थ की कमी। हम बुरे हैं, पुरुषार्थ के कारण नहीं, इसे खयाल कर लें। हम बुरे हैं पुरुषार्थ की कमी के कारण। हम अगर चोर हैं तो इसलिए नहीं कि हम हिम्मतवर हैं, हम इसलिए चोर हैं कि हम अचोर होने लायक पुरुषार्थ नहीं जुटा पाते। हम अगर झूठ बोलते हैं तो इसलिए नहीं कि हम होशियार हैं। हम झूठ बोलते हैं इसलिए कि सत्य बोलने में बड़े पुरुषार्थ की, बड़ी सामर्थ्य की, बड़ी शक्ति की जरूरत है। अगर हम अधार्मिक हैं तो शक्ति के कारण नहीं, कमजोरी के कारण क्योंकि धर्म को पालन करना बड़ी शक्ति की आवश्यकता है। और अधर्म में बहे जाने में कोई शक्ति की जरूरत नहीं। अधर्म है उतार की तरह, आपको लुढ़का दिया जाये, आप लुढ़कते चले जायेंगे पत्थर की तरह। धर्म है पहाड़ की तरह, यात्रा करनी पड़ती है। एक-एक इंच कठिनाई है और एक-एक इंच सामान कम करना पड़ता है क्योंकि बोझ पहाड़ पर नहीं ले जाया जा सकता। आखिर में तो अपने तक को छोड़ देना पड़ता है, तभी कोई शिखर पर पहुंचता है। आज इतना ही। 523 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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