Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 548
________________ "ओशो का साहित्य इतनी प्रचुर मात्रा और इतने विविध आयामों में विस्तृत है कि उसके। सम्यक अवलोकन के लिए पूरा एक जीवन चाहिए। रचयिता के रूप में जितने ग्रंथों के साथ उनका नाम संपक्त है वे स्वयं एक जीवंत पस्तकालय को आकार-प्रकार देने में समर्थ हैं। परातन और आधनिक ज्ञान-विज्ञान का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहां उनकी उपस्थिति या गति का अहसास न होता हो। इस मायने में उनकी कृतियों का गुणात्मक मूल्य एक विश्वकोष की समता रखता है। किंतु, परिमाण में वह इतना है कि कई विश्वकोष एक साथ उसके उदर में समा जाएं। आश्चर्य है कि इतनी सारी रचनाएं एक व्यक्ति से कैसे निर्मित हो गईं!" महाकवि आरसी प्रसाद सिंह "इसके पहले कभी मैं ऐसे एक व्यक्ति के संपर्क में नहीं आया था जिसके पास कला, विज्ञान, मानवीय मनोविज्ञान और धार्मिकता को एक में समेटती हुई सुसंगत एवं विशाल सृजनात्मक दृष्टि हो।" डॉ. एर्नाल्ड श्लेगर, पीएच.डी. स्विस भौतिक वैज्ञानिक एवं लेखक A REBEL BOOK ISB Nivale la personal use" Griy Jain Education International www.jainelibrary.org

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