Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 425
________________ काम वासना है दूसरे की खोज आप जो भी करते हैं, सोचते हैं, जब चाहें तब छोड़ दें, इतना आसान नहीं है। जरा-सी आदत भी छोड़नी आसान नहीं। आदत बड़ी वजनी है। आपकी आत्मा आदत से बहुत कमजोर है। एक छोटी-सी आदत छोड़ना चाहें, तब आपको पता चलेगा कि कितना मुश्किल है, लेकिन काम तो गहनतम आदत है, क्योंकि बायोलाजिकल है, जैविक है। गहनतम आपके प्राणों में काम की ऊर्जा छिपी है, क्योंकि आदमी का जन्म होता है काम से, उसका रोआ-रोआं निर्मित होता है काम से, उसका एक-एक कोष्ठ पैदा होता है काम के कोष्ठ से। आप काम का ही विस्तार हैं। आप हैं इसलिए जगत में कि आपके माता-पिता, उनके पिता, उनकी मां करोड़ों-करोड़ों वर्ष से काम ऊर्जा को फैला रहे हैं। आप उसका एक हिस्सा हैं। आपके माता-पिता की कामवासना का आप फल हैं। इस फल के रोयें-रोयें में, कण-कण में कामवासना छिपी है। और सब आदतें ऊपरी हैं। कामवासना गहनतम आदत है। इसलिए महावीर कहते हैं, अगर आदत निर्मित होनी शुरू हो जाए तो अत्यंत दुष्कर है। फिर अब्रह्मचर्य का त्याग करके ब्रह्मचर्य में प्रवेश करना अत्यंत दुष्कर है। असंभव वे नहीं कहते, इसलिए तंत्र का पूर्ण निषेध नहीं है। दुष्कर कहते हैं। और निश्चित ही, जिनको सिगरेट पीना छोड़ना मुश्किल हो, उनके लिए महावीर ठीक ही कहते हैं। जो सिगरेट भी न छोड़ सकते हों, वे सोचते हों कि काम के अनुभव को छोड़ देंगे, तो वे आत्महत्या में लगे हैं। उनके लिए यह संभव नहीं होगा। इसलिए तंत्र की भी शर्ते भी बड़ी अजीब हैं। तंत्र पहले और सब तरह की आदतें तुड़वाता है, और जब निश्चिंत हो जाता है तांत्रिक गुरु कि सब तरह की आदतें टूट गयीं तब, तब वह इन गहन प्रयोगों के लिए आज्ञा देता है। ___तंत्र की शर्ते कठोर हैं। तंत्र मानता है, जब तक प्रत्येक स्त्री में मां का दर्शन न होने लगे, न केवल मां का, बल्कि जब तक प्रत्येक स्त्री में तारा का, दुर्गा का, देवी का, भगवती का, परम मां का, जगत जननी का स्मरण न होने लगे, तब तक तंत्र नहीं कहता कि संभोग के द्वारा समाधि उपलब्ध हो सकेगी। ___ तो तंत्र की प्राथमिक प्रक्रियाओं में स्त्री में मां का दर्शन, परम जननी का दर्शन। इसके प्रयोग हैं। इसलिए सभी तांत्रिक ईश्वर को मां के रूप में देखते हैं, पिता के रूप में नहीं। और जब मां दिखायी पड़ने लगे प्रत्येक स्त्री में, तभी तंत्र का प्रयोग किया जा सकता है। __ और तंत्र के प्रयोग की जो पूरी आयोजना है, वह अति कठिन है। अति कठिन इसलिए है कि पहले स्त्री को तिरोहित करना होता है। वह समाप्त हो जाये, विलीन हो जाये, स्त्री मौजूद न रहे, और तब ही उसके साथ संभोग में परम पवित्र भाव से प्रवेश करना होता है। अगर क्षण भर को भी वासना आ जाये, तो तंत्र का प्रयोग असफल हो जाता है। लेकिन वह दूभर है। महावीर कहते हैं, दुष्कर है। आसान आदमी के लिए यही है कि वह जिससे मुक्त होना चाहता हो, उसकी आदत निर्मित न करे। यह आसान क्यों है? क्योंकि जब ऊर्जा भीतर भरती है तो बहना चाहती है। ऊर्जा का लक्षण है बहना। जैसे नदी बहती है सागर की तरफ, ऐसे ऊर्जा भी किसी से मिलने के लिए बहती है। ये मिलन दो तरह के हो सकते हैं। यह मिलन या तो अपने से बाहर घटित होगा कि किसी पुरुष का स्त्री से, किसी स्त्री का पुरुष से। यह एक बहाव है। एक और बहाव है भीतर की तरफ, अपने से ही मिलने का। यह जो आंतरिक बहाव है, अगर बाहर बहने की आदत न हो तो शक्ति खुद इतनी भर जायेगी कि वह भीतर के द्वार खटखटाने लगेगी और भीतर बढ़ना शुरू हो जायेगी। ___ ब्रह्मचर्य पर इतना जोर इसी कारण है। इस कारण कि शक्ति इतनी होनी चाहिए कि वह शक्ति खुद भी मार्ग खोजने लगे, और नीचे की कोई आदत न हो, बाहर की कोई आदत न हो,दूसरे के प्रति बहने की कोई आदत न हो, तो मार्ग न मिले। और जब मार्ग नहीं मिलता 411 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548