Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 533
________________ मनुष्यत्व : बढ़ते हुए होश की धारा __ आदमी-मनुष्य के इस भेद को बढ़ाते जाना क्रमशः आत्मा के निकट पहुंचना है। इस भेद को बढ़ाने में ये तीन बातें काम करेंगी जो और भी दुर्लभ हैं। मनुष्य होना मुश्किल, मनुष्यत्व पाना और भी मुश्किल। धर्म-श्रवण, इसको क्यों इतना मुश्किल कहा है? सब तरफ धर्म-सभाएं चल रही हैं, गांव-गांव धर्मगुरु हैं! न खोजो तो भी मिल जाते हैं, न जाओ उनके पास तो आपके घर आ जाते हैं। धर्म गुरुओं की कोई कमी है? कोई तकलीफ है? शास्त्रों की कोई अड़चन है? सब तरफ सब मौजूद है। __इसलिए महावीर कहते हैं, धर्म-श्रवण दुर्लभ! मालूम नहीं पड़ता। कितने चर्च, कितने गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जिद, तीन हजार धर्म हैं पृथ्वी पर। और महावीर कहते हैं, धर्म-श्रवण दुर्लभ है! अकेले कैथोलिक पादरियों की संख्या दस लाख है। हिंदू संन्यासी एक लाख हैं! जैनियों के मुनि इतने हो गये हैं कि गृहस्थ खिलाने में उनको असुविधा अनुभव कर रहे हैं। थाईलैंड में चार करोड़ की आबादी है, बीस लाख भिक्षु हैं। सरकार नियम बना रही है कि अब बिना लाइसेंस के कोई संन्यास न ले सकेगा। क्योंकि इतने लोगों को पालेंगे कैसे? और महावीर कहते हैं, धर्म-श्रवण दुर्लभ! शास्त्र ही शास्त्र हैं, बाइबिलें हैं, कुराने हैं, धम्मपद है, महावीर के सूत्र हैं, गीता है, वेद हैं, धर्म ही धर्म, शास्त्र ही शास्त्र, गुरु ही गुरु। इतना सब शिक्षण है। हर आदमी धार्मिक है। और महावीर का दिमाग खराब मालूम पड़ता है। फिर धर्म-श्रवण दुर्लभ है! उसका कारण है। क्योंकि न तो शास्त्रों से मिलता है धर्म, न उपदेशकों से मिलता है धर्म। कभी-कभी अरबों-खरबों मनुष्य में एक आदमी धर्म को उपलब्ध होता है। अरबों-खरबों आदमियों में कभी-कभी एक आदमी मनुष्यत्व को उपलब्ध होता है। अरबों-खरबों मनुष्य में कभी एक आदमी धर्म को उपलब्ध होता है। और जो धर्म को उपलब्ध हुआ है उसे सुनना ही धर्म-श्रवण है। कभी कोई महावीर कभी कोई बुद्ध। बुद्ध मर रहे हैं, तो आनंद छाती पीटकर रो रहा है। बुद्ध कहते हैं, तू रोता क्यों है? आनंद कहता है कि रोता इसलिए हूं कि आपको सुन कर भी मैं न सुन पाया। आप मौजूद थे, फिर भी आपको न देख पाया। और अब आप खो जायेंगे, और अब कितने कल्प बारा किसा बुद्ध का दर्शन हो। रो रहा हूं इसलिए कि अब यह यात्रा बड़ी मुश्किल हो जाने वाली है। अब किसी बद्ध पुरुष का दर्शन हों, इसके लिए कल्पों-कल्पों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ___ बुद्ध का जन्म हुआ, तो हिमालय से एक वृद्ध संन्यासी भागा हुआ बुद्ध के गांव आया। नब्बे वर्ष उसकी उम्र थी। सम्राट के द्वार पर पहुंचा। बुद्ध के पिता से उसने कहा कि बेटा तुम्हारे घर में पैदा हुआ है, उसके मैं दर्शन करने आया हूं। पिता हैरान हो गये। की ही उम्र थी उस बेटे की, और वृद्ध संन्यासी प्रतिभावान तेजस्वी, अपूर्व सौंदर्य से, गरिमा से भरा हुआ। बुद्ध के पिता उस संन्यासी के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने सोचा, जरूर सौभाग्य है मेरा कि ऐसा महापुरुष मेरे बेटे का दर्शन करने आया, आशीर्वाद देने आया। कुछ अनूठा बेटा पैदा हुआ है। ___ शुद्धोधन अपने बेटे को लेकर, सिद्धार्थ को लेकर, बुद्ध को लेकर संन्यासी के चरणों में जाने लगे रखने, तो संन्यासी ने कहा, रुको। मैं उसके चरणों में पड़ने आया हूं। और वह नब्बे वर्ष का वृद्ध, महिमावान संन्यासी उस छोटे से दो दिन के बच्चे के चरणों में गिर पड़ा। और छाती पीटकर रोने लगा। ___ बुद्ध जब मर रहे थे तो आनंद छाती पीटकर रो रहा था, एक दूसरा संन्यासी। और बुद्ध जब पैदा हुए तो एक और संन्यासी छाती पीटकर रो रहा था। ___ बुद्ध के पिता बहुत घबरा गये। उन्होंने कहा, यह आप क्या अपशकुन कर रहे हैं? यह रोने का वक्त है? आशीर्वाद दें। आप क्यों रोते हैं? क्या यह बेटा बचेगा नहीं? आप क्यों रोते हैं? क्या कुछ अशुभ हुआ है? 519 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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