Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 447
________________ ब्रह्मचर्य : कामवासना से मुक्ति स्वाद कल न मिले तो दुख मिलेगा अगर यह स्वाद कल भी मिले, परसों भी मिले, तो भी दुख मिलेगा। स्वाद न मिले, तो पीड़ा अनुभव होगी पाने की। स्वाद मिलता रहे, तो बोथला हो जायेगा, ऊब पैदा हो जायेगी। इसलिए जिनको रोज अच्छा भोजन मिलता है उनका स्वाद खो जाता है, उनको फिर स्वाद नहीं आता। जिनको अच्छे बिस्तर पर रोज सोने को मिलता है, उन्हें फिर बिस्तर का पता चलना बंद हो जाता है। जो भी आपके पास है, उसका आपको पता नहीं चलता। तो सुख अगर मिलता रहे तो विलीन हो जाता है। न मिले तो दुख देता है। सुख हर हालत में दुख देता है। मिले तो, न मिले तो। जिसे हम सुख कहते हैं, वह दुख के लिए एक द्वार ही है, उससे बचने का कोई उपाय नहीं है। जो सुख की तरफ आकर्षित हुआ वह दुख में गिरेगा। __ दुख दो तरह के हो सकते हैं--मिलने का दुख हो सकता है, न मिलने का दुख हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा हम दुख बदल सकते हैं। इससे ज्यादा संसार में कोई उपाय नहीं है। एक दुख को छोड़ कर दूसरे दुख पर जा सकते हैं। एक दुख को छोड़ कर दूसरे दुख पर जाने में बीच में जो थोड़ा अंतराल पड़ता है उसे ही लोग सुख कहते हैं। जितनी देर को वे दुख में नहीं होते, उतनी देर को सुख कहते हैं। हमारा सुख नकारात्मक है, निगेटिव है। इसलिए महावीर कहते हैं, समस्त दुखों का मूल इंद्रियां हैं। जब तक यह हमें दिखायी न पड़ जाये, तब तक हम इंद्रियों से ऊपर उठने की चेष्टा में भी संलग्न न होंगे। अगर हमें यही दिखायी पड़ता रहे कि समस्त सुखों का मूल इंद्रियां हैं, तो स्वभावतः हम अपने संसार को फैलाये चले जायेंगे। पुनर्जन्म का एक ही मूल कारण है कि इंद्रियां सूख का आधार हैं। मोक्ष का एक ही कारण है कि इंद्रियां दुख का आधार हैं। तो हम अपने सुख की थोड़ी तलाश करें। जब भी आपको सुख मिले, आप थोड़ी खोज करना। पहले तो यह देखना कि यह सुख क्या है? जैसे ही आप देखेंगे, निन्यानबे प्रतिशत सुख तिरोहित हो जायेगा। जिसे आप प्रेम करते हैं, उसका हाथ आपके हाथ में आ गया, तो फिर आंख बंद करके जरा ध्यान करना कि क्या सुख मिल रहा है, तब सिर्फ हाथ-हाथ में रह जायेगा। और थोड़ा ध्यान करेंगे तो वजन हाथ में रह जायेगा। और थोड़ा ध्यान करेंगे तो सिर्फ पसीना हाथ में छूट जायेगा। कौन-सा सुख मिल रहा था, उसको जरा गौर से देखना। जब मुंह में भोजन डाला हो और रस आ रहा हो, स्वाद मालूम पड़ रहा हो तब जरा आंख भी बंद कर लेना और उस पर ध्यान करना कि कौन-सा सुख मिल रहा है। निन्यानबे प्रतिशत सख तत्काल तिरोहित हो जायेगा। थोड़ी देर में आप पायेंगे कि मुंह सिर्फ एक यांत्रिक काम कर रहा है चबाने का। जीभ एक यांत्रिक काम कर रही है खबर देने की कि कौन-सा भोजन ले जाने योग्य है, कौन-सा भोजन नहीं ले जाने योग्य है। स्वाद का उतना जीवन के लिए उपयोग है कि कहीं जहर न खा लिया जाये, कि कहीं कड़वी चीज न खा ली जाये, कहीं कुछ व्यर्थ भीतर न चला जाये। उतना तो अस्तित्वगत उपयोग है। उतनी ही जीभ की खबर है। जीभ सचेतन रूप से उतनी खबर देती रहेगी। कान खबर दे रहे हैं, आंखें खबर दे रही हैं। ये जीवन के सर्वाइवल मेजर्स हैं, बचने के उपाय हैं। इससे ज्यादा मूल्य खतरनाक हैं। सुख ज्यादा मूल्य देने की बात है। ___ इसे ठीक से जो आदमी खोज करेगा अपने भीतर, वह पायेगा कि जब सुख होता है तब कुछ होता नहीं, सिर्फ खयाल होता है, सिर्फ कल्पना होती है। सिर्फ माना हुआ ख्याल होता है। सिर्फ माना हुआ एक सम्मोहित ख्याल होता है। ___ आपको कोई एक चमकदार पत्थर लाकर दे दे और कहे कि बहुमूल्य हीरा है। और आपको भरोसा हो जाये उस आदमी का या उस आदमी पर आपको भरोसा रहा हो, तो उस रात...उस रात आप सो न सकेंगे इतने सुख से भर जायेंगे। सुबह पता चले कि वह पत्थर का ही टुकड़ा है, हीरा नहीं है, सिर्फ कांच है चमकता हुआ, सब सुख तिरोहित हो जायेगा। रात जो सुख आपने लिया वह हीरे के 433 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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