Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 506
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 एक संबंध है बाहर का जो शरीर से होता है। शरीर कितने ही निकट आ जाये तो भी दूरी बनी रहती है। शरीर के साथ कोई निकटता हो ही नहीं पाती। कितने ही निकट ले जाओ, आलिंगन कर लो किसी का, फिर भी बीच में फासला बना ही रहता है। दो शरीर कभी भी एक शरीर नहीं, नहीं हो सकते। शरीर का होना ही पार्थक्य है। फिर एक और आंतरिक सामीप्य है। सारिपत्त उसी की बात कर रहा है। वह कह रहा है, अब फासले टूट गये, अब कोई स्पेस, कोई जगह बीच में नहीं है। अब मैं नहीं हूं बुद्ध ही हैं. या कहं कि मैं हं, बुद्ध नहीं हैं, एक ही बात है। ___ इससे भी ज्यादा मजेदार घटना तो तब घटी, कहते हैं, महाकाश्यप अपने ही पैर छू लेता था। लोगों का बहुत अजीब लगता होगा। महाकाश्यप बुद्ध का दूसरा शिष्य था और शायद उनके सारे शिष्यों में अदभुत था। महाकाश्यप अपने ही पैर छू लेता था और लोगों ने उससे कहा, यह तुम क्या करते हो? वह कहता है कि बुद्ध के चरण छू रहा हूं। लोग कहते हैं, ये पैर तुम्हारे हैं। महाकाश्यप कहता कि अब उनसे इतनी निकटता हो गयी कि वह भीतर ही हैं, पैर उनके ही हैं। महाकाश्यप कहता, मैं किसी के भी पैर छूऊ, बुद्ध के ही पैर हैं। इतनी समीपता भी बन सकती है। इस सामीप्य में ही संवाद है। इसलिये महावीर कहते हैं, उनके पास रहता हो, उनके निकट होता हो। इस निकटता में भौतिक निकटता ही अंतर्निहित नहीं है, आंतरिक सामीप्य भी है, वही है वस्तुतः अंत में। 'गुरु के इंगितों को ठीक-ठीक समझता हो।' हम तो गुरु के शब्द को भी ठीक से नहीं समझ पाते, इंगित तो बड़ी और बात है। इंगित का अर्थ है, इशारा, जो कहा नहीं गया है, फिर भी दिया गया है। शायद इतना बारीक है कि कहने में टूट जायेगा, इसलिए कहा नहीं गया है। सिर्फ दिया गया है। शायद इतना सूक्ष्म है कि शब्द उसके सौंदर्य को नष्ट कर देंगे। स्थूल बना देंगे। इसलिए सिर्फ इशारा दिया गया है। जो गुरु है, वह धीरे-धीरे शब्दों का सहारा छोड़ता जाता है। जैसे-जैसे शिष्य विनीत होता है, जैसे-जैसे शिष्य झुकता है, वैसे-वैसे गुरु शब्दों का सहारा छोड़ता जाता है। इंगित महत्वपूर्ण हो जाते हैं, इशारे महत्वपूर्ण हो जाते हैं। शब्द भी सहारे हैं, लेकिन बहुत स्थूल, बहुत ऊपरी। __ बुद्ध कैसे चलते हैं, महावीर कैसे बैठते हैं, महावीर कैसे उठते हैं, महावीर कैसे सोते हैं इन सब में उनके इंगित हैं। बुद्ध कैसे हाथ उठाते हैं, कैसे आंख उठाते हैं, कैसे आंखें उनकी झपती हैं, उस सबमें उनके इंगित हैं। धीरे-धीरे जो उनके पास है, उनके शरीर की भाषा को समझने लगता है। हमारी भी शरीर की भाषा तो होती है, हमें भी पता नहीं होता। हमारे शरीर की भी भाषा होती है, और अब तो पश्चिम में एक साइंस ही किनेटिक्स निर्मित हो रही है, जो शरीर की भाषा पर निर्भर है, बाडी लैंग्वेज । __ और हम सब शरीर से भी बोलते रहते हैं। कभी आपने खयाल न किया होगा, बच्चे शरीर की भाषा को बिलकुल ठीक से समझते हैं। फिर धीरे-धीरे शब्द सीखने लगते हैं और शरीर की भाषा भूल जाते हैं। इसलिए बच्चों के साथ मां-बाप को कभी-कभी बड़ा स्ट्रेंज, बड़ा विचित्र अनुभव होता है कि मां मुस्कुरा रही है चेहरे से लेकिन बच्चा समझता है कि वह क्रोध में है। मां कह रही है, थपका रही है खिलौने ले आऊंगी बाजार से, और बड़ी प्रसन्नता दिखा रही है जैसे कि बच्चे से बड़ा प्रेम हो, लेकिन बच्चे समझ लेते हैं कि यह सब धोखा है। क्योंकि वह जो कह रही है, उसके हाथ की थपकी से पता नहीं चलता। बच्चे पहले तो बाडी लैंग्वेज सीखते हैं, शरीर की भाषा सीखते हैं। बच्चे जानते हैं कि मां जब उन्हें दूध पिला रही है, तो उसके स्तन का इशारा भी बच्चे समझते हैं कि इस वक्त वह प्रसन्न है, नाखुश है, पिलाना चाहती है, नहीं पिलाना चाहती, हट जाना चाहती है कि पास आना चाहती है। वह सब समझते हैं। क्योंकि पहली भाषा उनकी शरीर की भाषा है। वह मां को देखकर समझते हैं। अभी वह बोल नहीं सकते, न मां क्या 492 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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