Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 478
________________ महावीर वाणी भाग 1 ग्रीड, लोभ के ही विस्तार हैं। जिस व्यक्ति का लोभ गिर जाता है उसके ये तीनों, जिनको हम शत्रु कहते हैं, ये भी गिर जाते हैं । लोभ के बिना क्रोध करिएगा कैसे? हां, यह हो सकता है कि क्रोध के बिना भी लोभ रहे। यह असंभव है कि लोभ के बिना कामवासना हो, लेकिन कामवासना के बिना भी लोभ हो सकता है। कैसे? ब्रह्मचर्य में भी लोभ हो सकता । और मैं, और ब्रह्मचारी, और ब्रह्मचारी, हो जाऊं, यह भी लोभ का हिस्सा हो सकता है। आत्मा में भी लोभ हो सकता है और परमात्मा में भी लोभ हो सकता है। अकसर ऐसा होता है कि लोभी अपने लोभ के लिए, जब संसार हाथ से छूटने लगता है तो दूसरे लोभ की चीजों को पकड़ना शुरू कर देते हैं। जो यहां धन पकड़ता था, वहां धर्म को पकड़ने लगता है। लेकिन पकड़ वही है। लोभ का भाव वही है। संसार खो गया, कोई हर्ज नहीं, स्वर्ग न खो जाये। यहां यश न मिला प्रतिष्ठा न मिली, कोई हर्ज नहीं, उस परलोक में भी कहीं आनंद न खो जाये, कहीं ऐसा न हो कि यह संसार तो खो ही गया दूसरा संसार भी खो जाये, यह लोभ पकड़ता है I इसलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अधिक लोग बूढ़े होकर धार्मिक होने शुरू हो जाते हैं, लोभ के कारण। जवान आदमी से मौत जरा दूर होती है। अभी दूसरे लोक की इतनी चिंता नहीं होती। अभी आशा होती है कि यहीं पा लेंगे, जो पाने योग्य है । यहीं कर लेंगे इकट्ठा। लेकिन मौत जब करीब आने लगती है, हाथ-पैर शिथिल होने लगते हैं और संसार की पकड़ ढीली होने लगती है इंद्रियों की, तो भीतर का लोभ कहता है, यह संसार तो गया ही, अब दूसरे को मत छोड़ देना । 'माया मिली न राम'। कहीं ऐसा न हो कि माया भी गयी, राम भी गये । अब राम को जोर से पकड़ लो । इसलिए बूढ़े लोग मंदिरों, मस्जिदों की तरफ यात्रा करने लगते हैं। तीर्थयात्रियों में देखें, बूढ़े लोग तीर्थ की यात्रा करने लगते हैं । ये वही लोग हैं जिन्होंने जवानी में तीर्थ के विपरीत यात्रा की है । कार्ल गुस्ताव जुंग ने इस सदी के बड़े से बड़े मनोचिकित्सक ने कहा है, कि मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों में जिन लोगों की मैंने चिकित्सा की है, उनमें अधिकतम लोग चालीस वर्ष के ऊपर थे। और उनकी निरंतर चिकित्सा के बाद मेरा यह निष्कर्ष है कि उनकी बीमारी का एक ही कारण था कि पश्चिम में धर्म खो गया है। चालीस साल के बाद आदमी को धर्म की वैसी ही जरूरत है, जुंग ने कहा है, जैसे जवान आदमी को विवाह की। जवान को जैसे कामवासना चाहिए, वैसे बूढ़े को धर्म-वासना चाहिए। जुंग ने कहा है, अधिक लोगों कि परेशानी यह थी कि उनको धर्म नहीं मिल रहा है। इसलिए पूरब में कम लोग पागल होते हैं, पश्चिम में ज्यादा लोग । पूरब में जवान आदमी भला पागल हो जाये, बूढ़ा आदमी पागल नहीं होता। पश्चिम में जवान आदमी पागल नहीं होता, बूढ़ा आदमी पागल हो जाता है। जैसे-जैसे जवानी हटती है, वैसे-वैसे रिक्तता आती है। यौवन की वासना खो आती है और बुढ़ापे की वासना को कोई जगह नहीं मिलती। मन बेचैन और व्यथित हो जाता है । हमारा बूढ़ा सोचता है आत्मा अमर है, आश्वासन होते हैं। हमारा बूढ़ा सोचता है, माला जप रहे हैं, राम नाम ले रहे हैं, स्वर्ग निश्चित । सांत्वना मिलती है। पश्चिम के बूढ़े को कोई भी सांत्वना नहीं रही। पश्चिम का बूढ़ा बड़े कष्ट में है, बड़ी पीड़ा में है। सिवाय मौत के आगे भी दिखायी नहीं पड़ता कुछ उस पार । उस पार लोभ को कोई मौका नहीं । जवानी के लोभ विषय खो गये और बुढ़ापे के लोभ के लिए कोई आब्जेक्ट, कोई विषय नहीं मिल रहे । मौत का तो लोभ हो नहीं सकता अमरता का हो सकता है। बूढ़ा आदमी शरीर का क्या लोभ करेगा! शरीर तो खो रहा है, हाथ से खिसक रहा है। तो शरीर के ऊपर, पार कोई चीज हो तो लोभ करे । लोभ अदभुत है, विषय बदल ले सकता है। धन ही पर लोभ हो, ऐसा आवश्यक नहीं। लोभ किसी भी चीज पर हो सकता है। Jain Education International 464 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548