Book Title: Mahavira Chitra Shataka Author(s): Kamalkumar Shastri, Fulchand Publisher: Bhikamsen Ratanlal Jain View full book textPage 5
________________ वीरं शरणं पव्वज्जामि सन्मति शरणं पव्वज्जामि धम्मं शरणं पव्वज्जामि जिन्होने महामोह पर विजय प्राप्त की उन महावीर प्रभु की शरण को प्राप्त होता हूँ। जिन्होने कैवल्य रश्मियो से सारा लोक ज्ञानालोक से भर दिया उन सन्मति श्री की शरण को प्राप्त होता हूँ। अर्हत्केवली भगवान वर्द्धमान द्वारा प्ररूपित वीतराग धर्म की शरण को प्राप्त होता हूँ। गणधर इन्द्रो ने भी जिनकी महिमा नही सर्वथा आँकी । जिनकी स्तुति करते-करते शक्ति थकी जिनवाणी माँ की । मैं अल्पज्ञ भला क्या जान ? महावीर सर्वज्ञ जानतेकैसे उनके जीवन दर्शन की खीची है मैंने झाँकी ।।Page Navigation
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