Book Title: Mahavir Vardhaman Author(s): Jagdishchandra Jain Publisher: Vishvavani Karyalay View full book textPage 9
________________ शिष्यों को चारों दिशाओं में धर्मप्रचार के लिये भेजा था । बृहत्कल्प सूत्र ( १.५० ) में उल्लेख है कि महावीर ने जैन श्रमणों को साकेत (अयोध्या) के पूर्व में अंग-मगध तक, दक्षिण में कौशांबी तक, पश्चिम में स्थूणा (स्थानेश्वर ) तक तथा उत्तर में कुणाला ( उत्तर कोशल ) तक विहार करने का आदेश दिया था। स्वयं महावीर घूम-फिरकर जनता को धर्म का उपदेश देते थे । यदि महावीर का धर्म केवल वैयक्तिक होता तो उसका प्रचार सामूहिकरूप से कभी नहीं हो सकता था । यह बात दूसरी है कि महावीर और बुद्ध के युग की समस्यायें हमारी आधुनिक समस्याओं से भिन्न थीं, परन्तु हम इन महान् पुरुषों के उपदेशों को अपने देश की आधुनिक समस्याओं के हल करने में उपयोगी बना सकते हैं, इस में कोई भी सन्देह नहीं । यह पुस्तक लिखे जाने के बाद मैंने इसे अपने कई आदरणीय मित्रों को पढ़कर सुनाई, जिन में डाक्टर नारायण विष्णु जोशी, एम० ए०, डि-लिट् ०, पं० नाथूराम जी प्रेमी, पं० सुखलाल जी, डाक्टर मोतीचन्द जी एम० ए०, पी-एच० डी०, साहू श्रेयांसप्रसाद जी जैन, मेरी पत्नी सौ० कमलश्री जैन आदि के नाम मुख्य हैं। इन कृपालु मित्रों ने जो इस पुस्तक के विषय में अपनी बहुमूल्य सूचनायें दी हैं, उन का मैं आभारी हूँ । विशेषकर डा० नारायण विष्णु जोशी, साहू श्रेयांसप्रसाद जी जैन तथा सौ० कमलश्री जैन का इस पुस्तक के लिखे जाने में विशेष हाथ है, अतएव मैं इन मित्रों का कृतज्ञ हूँ । श्री भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी ने जो इस पुस्तक के विषय में दो शब्द लिखने की कृपा की है, एतदर्थ मैं उनका आभारी हूँ । लाँ जर्नल प्रेस के मैनेजर श्री कृष्णप्रसाद दर ने इस पुस्तक की छपाई आदि का काम अपनी निजी देखरेख में कराया है, अतएव वे धन्यवाद के पात्र हैं । शिवाजी पार्क, बंबई ५-६-४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat जगदीशचन्द्र जैन www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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