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महावीर वर्धमान
महावीर - वचनामृत
१ सव्वे पाणा पियाज्या, सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सव्वेंसि जीवियं प्रियं । ( आचारांग २.३.८१ )
अर्थ -- समस्त जीवों को अपना अपना जीवन प्रिय हैं, सुख प्रिय है, वे दुख नहीं चाहते, वध नहीं चाहते, सब जीने की इच्छा करते हैं (अतएव सब जीवों की रक्षा करनी चाहिये) ।
२ सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविडं न मरिज्जिउं । तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं ॥
( दशवैकालिक ६.११) अर्थ -- सब जीव जीना चाहते हैं, कोई भी मरना नहीं चाहता, अतएव निर्ग्रन्थ मुनि भयंकर प्राणिवध का परित्याग करते हैं ।
३ अपणट्टा पट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया । हिंसगं न मुसं बूया, नो वि अन्नं वयावए ॥
( दशवैकालिक ६.१२ )
पदे पदे छोटो छोटो निषेधेर डोरे बँधे बंधे राखियो ना भालो छेले करे
प्रान दिये दुःख सये, आापनार हाते संग्राम करिते दाश्रो भालमन्द साथ शीर्ण शान्त साधु तव पुत्रदेर घरे दाश्रो सर्व गृहत्याग लक्ष्मी छाडा करे
सात कोटि सन्ताने रे, हे मुग्ध जननी रेखे छे बंगाली करे, मानूष कर नि ॥
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