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महावीर-वचनामृत
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अर्थ — भले ही कोई नग्न रहे या महीने महीने में भोजन करे, परन्तु यदि वह मायायुक्त है तो उसे बार बार जन्म लेना पड़ेगा ।
२० तेसि पि न तवो सुद्धो निक्खंता जे महाकुला । जं ने बन्ने बियाणंति, न सिलोगं
पवेज्जए ॥
(सूत्रकृतांग ८.२४)
अर्थ --- महान् कुल में उत्पन्न होकर संन्यास ले लेने से तप नहीं हो जाता ; असली तप वह है जिसे दूसरा कोई जानता नहीं तथा जो कीति की इच्छा से किया नहीं जाता ।
२१ न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएणमत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जयतो, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥
( दशवैकालिक १०.१६ )
अर्थ - जो जाति का अभिमान नहीं करता, रूप का अभिमान नहीं करता, लाभ का अभिमान नहीं करता, जो ज्ञान का अभिमान नहीं करता ; जिस ने सब प्रकार के मद छोड़ दिये हैं और जो धर्मध्यान में रत है, वही भिक्षु है ।
२२ पासंडियलिंगाणि गिहिलिंगाणि य बहुप्पयाराणि । धित्तुं वदंति मूढा लिगमिणं मोक्खमग्गो ति ॥ २३ ण वि होदि मोक्खमग्गो लिंगं जं देहणिम्ममा श्ररिहा । मुइत्तु दंसणणाणचरिताणि सेवंति ॥
लिंगं
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( समयसार ४३० - १ )
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