Book Title: Mahavir Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalay

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Page 36
________________ स्त्रियों का उच्च स्थान ३५ ५४ बुद्ध ने स्त्रियों के प्रति काफ़ी सम्मान का प्रदर्शन किया है । ऐसी दशा में महावीर ने चतुर्विध संघ में स्त्रियों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था । प्राचीन जैन शास्त्रों में सैकड़ों महिलाओं के नाम मिलते हैं जिन्हों ने महावीर की धर्मकथा सुनकर आत्मकल्याण किया । चन्दनबाला, जिसे कौशांबी के सेठ ने बाज़ार से खरीदा था और सेठ की स्त्री ने जिस का सिर उस्तरे से मुंडवाकर और पैरों में बेड़ियाँ डालकर एक घर में वन्दकर दिया था, महावीर की प्रथम शिष्या और उन के भिक्षुणी संघ की अधिष्ठात्री थी । ५५ इसी प्रकार राजीमती ने अपने संयम और त्याग द्वारा जो अपने चरित्र की उज्वलता का परिचय दिया है, वह किसी भी पुरुष के लिये स्पृहणीय है । संसार के सुखों का त्यागकर अरिष्टनेमि के पदचिह्नों का अनुगमन करना तथा स्वचरित्र से स्खलित होते हुए अरिष्टनेमि के भ्राता रथनेमि को संयम में स्थिर रखना यह राजीमती जैसी वीरांगना का ही काम था । जैन ग्रन्थों में स्त्री-रत्न चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक माना गया है, " तथा यह कहा गया है कि जल, अग्नि, चोर-डाकू, दुष्काल- जन्य आदि संकट उपस्थित होने पर सर्वप्रथम स्त्री की रक्षा करनी चाहिये । चेलना राजगृह के राजा श्रेणिक की रानी थी। एक बार महावीर के दर्शन करके लौटते समय उस ने रास्ते में तप करते हुए एक साधु को देखा । वह घर आकर रात को सो गई । संयोगवश सोते सोते उस का हाथ पलंग के नीचे लटक गया और ठंढ के मारे सुन्न हो गया । रानी की जब आँख खुली तो उस के शरीर में असह्य वेदना थी । उस के मुँह से अचानक निकल पड़ा ५६ ५३ ५५ देखो श्रन्तगड ५, ७, ८, नायाधम्मकहा; मूलाचार ४.१९६ कल्पसूत्र ५.१३५ ५६ उत्तराध्ययन २२ ५७ ५" जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ३. ६७ ५८ बृहत्कल्प भाष्य ४.४३४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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