Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 15
________________ (आचरण विषयक कर्त्तव्य याद कराना), वारणा यानि टोकना (अनुचित प्रवृत्ति पर टोकना), चोयणा यानि प्रेरणा (सदाचार हेतु प्रेरित करना), पडिचोयणा यानि बारम्बार प्रेरणा देना (कषाय-पूर्वक भी सत्पात्र को बार-बार समझाना आदि) साधु-साध्वी जी के समूह का जो नेतृत्त्व कर रहे हैं, ऐसे पट्टधर पर समूचे संघ का दायित्व होता है। विहार की सीमा, शास्त्रार्थ विवेचना, प्रायश्चित्त प्रदान, साध्वाचार समाचारी पालन, क्षेत्र-काल अनुसार निर्णय आदि गीतार्थ पट्टाचार्य ही प्रायः लेते हैं। गण-कुल-गच्छ आदि शब्द भी विशिष्ट हैं। जिनकी वाचना पद्धति समान होती है, वह श्रमण समूह गण कहलाता है। एक आचार्य का शिष्य परिवार कुल कहलाता है। शास्त्र में फरमाया है - तिण्ह कुलाणमिहो पुण, साविक्खाणं गणो होइ। अर्थात् एक दूसरे से सांभोगिक (वस्त्र, आहार आदि) व्यवहार रखने वाले तीन कुलों का समुदाय गण कहलाता है। आठ साधुओं के ऊपर एक गुरु स्थविर हो, तभी वह कुल कहलाता है। उसी प्रकार गण में 27 साधु एवं एक गणस्थविर आवश्यक है। किंतु समय के प्रभाव से इन शब्दों की महत्ता कम हो गई एवं 'गच्छ' शब्द अधिक प्रचलित हो गया क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य में 3 से लेकर 32,000 तक की श्रमण संख्या को गच्छ नाम से निर्दिष्ट कर दिया। भगवान महावीर की परम्परा में अनेकों गच्छ हुए। किसी भी साधु-साध्वी जी को एक गच्छ में सम्मिलित रहना ही चाहिए। गच्छाचार प्रकीर्णक में कहा है - गच्छो महानुभावो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला। सारण-वारण-चोयणमाईहिं न दोसपडिवत्ती॥ अर्थात् - गच्छ महाप्रभावशाली है क्योंकि उसमें रहने वालों की बड़ी कर्मनिर्जरा होती है। सारणा, वारणा और प्रेरणा आदि द्वारा उन्हें दोषों की प्राप्ति भी नहीं होती। गच्छाचार प्रकीर्णक, महानिशीथ सूत्र, संबोध प्रकरण आदि ग्रंथों में गच्छ का स्वरूप, उसकी मर्यादा एवं महत्ता का विस्तारपूर्वक विवेचन है। श्री महानिशीथ सूत्र में फरमाया है कि गणधर गौतम स्वामी जी भगवान् महावीर से पूछते हैं - से भयवं! केरिस-गुणजुत्तस्स णं गुरुणो गच्छ निक्खेवं कायव्वं? यानि हे भगवन्त कैसे गुणों से युक्त गुरु गच्छ का निक्षेप (नायकत्व) कर सकते हैं? तो प्रभु ने फरमाया है सुंदर शीलवाले, स्त्रीकथा-भोजनकथा-चोरकथा के विरुद्ध हों, पापभीरू हों, शत्रु और मित्र, दोनों के प्रति समान भाव वाले हों, बहुश्रुत ज्ञान के धारक, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव एवं अन्य भावनान्तरों के ज्ञाता xiii

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