Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ सम्पादकीय १ अणु० जह० एग० अणु० ज० ज० एग० १ आउ० [उक्क०] जह० आउ० उ० ज० ६ अंतरं। वेउव्वि० अट्ठण्णं अंत० । अट्ठण्णं १ अणु० जहण्णु० एग० अणु० ज० ए० १ अथवा उक्क० णत्थि अवस्थवा (?) वाउ० (?) णत्थि ५ गोदा० [उक्क० अणु०] जह० एग० गोद० ज० ए० ७ आउ० [उक्क० अणुभा०] जह० आउ० ज० ४ आउ० (उक्क० अणु०) जह० आउ० ज० ६ एवमुक्कस्समंतरं समत्तं। ४ सव्वट्ठा त्ति गोद० सव्वट्ठात्ति। गोद० २ आउ० जह० णाणा आउ० ज० ज० णाणा१ अज० जह० जह० एग०, अज्ज० ज० ए० ४ घादि४-गोद० जह० अज० णत्थि घादि४ गोद ज० अज्ज० णत्थि अंत०। अंतरं। बेद० वेद० णाम० ज० अज्ज० णत्थि० अंत०। वेद० ३ उक्क० छावट्ठिसाग० उ० बा० (छा) वढिसाग० ८ णवगेवज्जभंगो। णवके (गे) वेज्जभंगो। ३ खइए घादि०४ जह० घादि०४ ज० ४ अज० [जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम०। अज्ज० ओघं०। आउ० णवरि गो० उ० बेसम०] आउ० ४ अज० जह० एग० अज्ज० ए० १३ उक्कस्सं। एवं णामा-गोदाणं उक्कस्सं० णामागोदाणं ३ णि० अणु० णि बं (?) अणु० ८ छट्ठाणपदिदं बंधदि। छट्ठाणपदिदं बंधदि। एवं णाम। १३ पुढवीए तिरिक्खोघं अदिस याव सव्वट्ठ । पुढवीए। तिरिक्खोघं अणुदिस याव त्ति सव्वएइंदि० सवट्ठ त्ति सव्वएइंदि० ४ उवरिमगेवज्जा त्ति सव्व उवरिमगेज्जा (वज्जा) त्ति। सव्व७ अणु० बं तिण्णं घादीणं अणु० बं। घादीणं माय-सामाइ०-छेदो० । अवगद० माय० । सामाइ० छेदो० अवगद० ६ अबंधगा। एवं पगदि बंधदि अबंधगा। ये पगदी बंधदि १७ सिया अबंधगा य बंधगे य, सिया बंधगे य। ११ अबंधगा य बंधगा य। अबंधगा य बंधगा यं (य)। ११ बंधगा य, सिया बंधगा य अबंधगे य, बंधगा य। अबंधगा य अबंधगे य। १२ तिरिक्खोघं पुढ०-आउ६-तेउ६-वाउ० तिरिक्खोघं। पुढवि० आउ० तेउ० वाउ० बादरपत्ते० बादर पुढ० आउ० तेउ० वाउ० बादरपत्ते० अणुक्क० तिण्णि भंगा। अणुक्क० अट्ठभंगा। ६ गोदस्स जह० अज० उक्कस्सभंगो गोदस्प वज्ज०। अज्ज० उक्कस्सभंगो। १२ अणाहारग त्ति। णवरि कम्मइ० अणा- अणहारग त्ति। हार० आउ० णत्थि। ६ अगुवा ००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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