Book Title: Lokvibhag
Author(s): Sinhsuri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 223
________________ १६८ ] लोकविभागः [ ९.३२ १ महोरगा दश ज्ञेयास्तत्राद्या भुजगाह्वकाः ' । भुजंगशालिसंज्ञाश्च महाकायाश्च नामतः ॥ ३२ अतिकायाश्चतुर्थास्तु पञ्चमाः स्कन्धशालिनः । मनोहराह्वयाः षष्ठाः स्तनिताशनिजवा अपि ॥ महैशकाश्च गम्भीरा अन्तिमाः प्रियदर्शनाः । महाकायोऽतिकायश्च तेषामिन्द्रौ प्रकीर्तितौ ॥ ३४ भोगा भोगवती चेति महाकायस्य वल्लभे । पुष्पगन्धातिकायस्य द्वितीया चाप्यनिन्दिता ।। ३५ सप्तधा राक्षसा भीमा महाभीमाश्च नामतः । विघ्ना विनायका चान्ये ततश्चोदकराक्षसाः ॥ ३६ षष्ठास्तेषां च विज्ञेया नाम्ना राक्षसराक्षसाः । ब्रह्मराक्षसनामानस्तेषामन्त्याश्च सप्तमाः ॥ ३७ sat भीममहाभीम राक्षसेषु महाबलौ । पद्मा च वसुमित्रा च भीमस्याग्रस्त्रियौ मते ॥ ३८ महाभीमस्य रत्नाढ्या द्वितीया कनकप्रभा । तथा किपुरुषा देवा दशधा पुरुषाह्नकाः ॥ ३९ पुरुषोत्तमनामानस्तथा सत्पुरुषाः परे । महापुरुषनामानः पुनश्च पुरुषप्रभाः ॥ ४० पुरुषा अतिपूर्वाश्च मरवो मरुदेवकाः । मरुप्रभा यशस्वन्तः इति भेदा दशोदिताः ॥४१ तेषु सत्पुरुषश्चेन्द्रो महापुरुष इत्यपि । रोहिणी नवमी देव्यौ ह्रीश्च पुष्पवती तथा ॥ ४२ माणिभद्राश्च पूर्णाश्च शैलभद्रास्ततः परे । सुमनोभद्रभद्रास्ते सुभद्राश्च प्रकीर्तिताः ॥ ४३ सप्तमाः सर्वतोभद्रा यक्षमानुषनामकाः । धनपालरूपयक्षा यक्षोत्तममनोहराः ॥ ४४ एवं द्वादशधा यक्षा माणिपूण तदीश्वरौ । कुन्दा च बहुपुत्रा च देव्यौ तारा तथोत्तमा ।। ४५ महोरग व्यन्तर दस प्रकारके जानना चाहिये- उनमें प्रथम भुजग नामक, भुजंगशाली, महाकाय, चतुर्थ अतिकाय, पंचम स्कन्धशाली, छठा मनोहर, स्तनित अशनिजव, महैशक (महेश्वर), गम्भीर और अन्तिम प्रियदर्शन है । उनके महाकाय और अतिकाय नामके दो इन्द्र कहे गये हैं । उनमें से महाकाय इन्द्रकी भोगा और भोगवती तथा अतिकाय इन्द्रकी पुष्पगन्धा और अनिन्दिता नामकी दो दो अग्रदेवियां हैं ।। ३२-३५ ।। I भीम, महाभीम, विघ्न, विनायक, उदकराक्षस, छठा नामसे राक्षसराक्षस और अन्तिम सातवां ब्रह्मराक्षस नामक; इस प्रकार ये सात कुल राक्षस व्यन्तरोंके जानना चाहिये। उन राक्षसोंमें भीम और महाभीम नामके दो बलवान् इन्द्र होते हैं । इनमें से भीमके पद्मा और वसुमित्रा तथा महाभीम रत्नाढ्या और द्वितीय कनकप्रभा नामकी दो दो स्त्रियां (अग्रदेवियां ) मानी गई हैं। किंपुरुष व्यन्तर देव दस प्रकारके हैं- पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मरु, मरुदेव, मरुप्रभ और यशस्वान् ; इस प्रकार ये उनके दस भेद कहे गये हैं । इनमें सत्पुरुष और महापुरुष नामके दो इन्द्र होते हैं । उनमें प्रथम इन्द्रके रोहिणी और नवमी तथा दूसरे इन्द्रके ह्री और पुष्पवती नामकी दो दो अग्रदेवियां हैं ।। ३६-४२ ।। मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, सुमनोभद्र, भद्र, सुभद्र, सातवां सर्वतोभद्र, यक्ष मानुष, धनपाल, रूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहर ; इस प्रकार यक्ष व्यन्तर देव वारह प्रकारके हैं । इनमें माणिभद्र और पूर्णभद्र नामके दो इन्द्र होते हैं । उनमें प्रथम इन्द्रके कुन्दा और बहुपुत्रा तथा द्वितीयके तारा और उत्तमा नामकी दो दो अग्रदेवियां हैं । इन्द्रोंकी आयु एक पल्योपम प्रमाण १आ प भुजगास्मृह्वकाः । २ प महैवकाश्च । ३प कायश्च । ४ प मणिभद्राश्च । ५ [स्ते समुद्राश्च ] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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