Book Title: Lokvibhag
Author(s): Sinhsuri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 261
________________ २०६] लोकविभागः [१०.२७५सोहम्मादिचउक्के कमसो अवसेसछक्कजुगलेसु । होति उ पुव्वुत्ताई याणविमाणाणि पत्तेयं ॥११ शस्त्रमाजनवस्त्राणि बहुधा भूषणानि च । पार्थिवानि ध्रुवाण्येव वैक्रियाण्य ध्रुवाणि तु॥२७५ इन्द्राणां कल्पनामानि विमानानि प्रचक्षते । चतुर्दिशं तु चत्वारि तेषां वेद्यानि नामभिः ॥२७६ वैडूयं रजतं चैव अशोकमिति पश्चिमम् । मृषत्कसारमन्त्यं च दक्षिणेन्द्राधिवासत: ॥२७७ रुचकं मन्दराज्यं च अशोक सप्तपर्णकम् । उत्तरेन्द्राधिवासेभ्यः कोतितानि चतुर्दिशम् ॥२७८ दक्षिणे ३ लोकपालानां नामान्युक्तानि मन्दरे । तान्येषां वै विमानानि त्रिषु कल्पेषु कल्पयेत् ॥२७९ उक्तं च [ति. प. ८-३००]होदि दु सयंपहक्खं वरजे?सयंजणाणि वग्गू य । ताण पहाणविमाणा सेसेसुं दखिणिदेसुं ॥१२ सौम्यं च सर्वतोभद्रं समितं शुभमित्यपि । उत्तरे 'लोकपालानां संज्ञाः कल्पद्वये मताः ॥२८० उक्तं च [ति. प ८,३०१-२]सोम्मं सव्वदभद्दा सुभद्दसमिदाणि सोमपहूदीणं । होति पहाणविमाणा सव्वेसि उत्तरदाणं ॥१३ ताणं विमाणसंखा उवएसो पत्थि कालदोसेण । ते सव्वे वि दिगिंदा तेसु विमाणेसु कोडंति ॥१४ सौधर्म आदि पृथक् पृथक् चार कल्पों और शेष छह युगलोंमेंसे प्रत्येकमें क्रमसे पूर्वोक्त यानविमान होते हैं ॥ ११ ॥ __ शस्त्र, भाजन, वस्त्र और बहुत प्रकारके भूषण ये पृथिवीनिर्मित और वैक्रियिक भी होते हैं । इनमेंसे पृथिवीमय स्थिर और वैक्रियिक अस्थिर होते हैं ॥ २७५ ।। इन्द्रोंके विमान कल्पनामवाले कहे जाते हैं। उनकी चारों दिशाओंमें वैडूर्य, रजत, अशोक और अन्तिम मृषत्कासार इन नामोंवाले चार विमान जानने चाहिये । ये विमान दक्षिण इन्द्रोंके निवासस्थानकी चारों दिशाओंमें होते हैं ।। २७६-२७७ ।। रुचक, मन्दर, अशोक और सप्तपर्ण ये चार विमान उत्तर इन्द्रोंके निवासस्थानोंकी चारों दिशाओंमें कहे गये हैं ।। २७८ ।। मन्दर पर्वतकी प्ररूपणामें (१-२६० व २६२ आदिमें ) दक्षिण (सौधर्म) इन्द्र के लोकपालोंके विमानोंके जो नाम कहे गये हैं वे तीन कल्पोंमें उनके विमानोंके नाम जानना चाहिये ॥२७९ ॥ कहा भी है लान्तव आदि शेष दक्षिण इन्द्रोंमें स्वयंप्रभ, उत्तम ज्येष्ठशत, अंजन और वल्गु ये प्रधान विमान जानना चाहिये ।। १२ ।।। सौम्य, सर्वतोभद्र, समित और शुभ ये उत्तरमें दो कल्पोमें लोकपालोंके प्रधान विमानोंके नाम माने गये हैं ॥ २८० ।। कहा भी है सौम्य, सर्वतोभद्र सुभद्र और समित ये सब उत्तर इन्द्रोंके सोम आदि लोकपालोंके प्रधान विमान होते हैं ।। १३ ।। उनके विमानोंकी संख्याका उपदेश कालदोषसे नष्ट हो गया है। वे सब लोकपाल उन विमानोंमें क्रीड़ा किया करते हैं ।। १४ ।। १ आणेन्द्राधिवासतः बन्द्रादिवासतः । २बरेन्द्रादिवा । ३ आब लोक । ४५ मंदिरे । ५ आ लोक । ६ ति. प. कालयवसेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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