Book Title: Lokvibhag
Author(s): Sinhsuri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ १९८] लोकविभामः [१०.२०१ब्रह्मयुग्मे सहस्रार्धं देव्यः सामानिका अपि । तदर्धं परयोर्देव्यः सामानिकचतुःशतम् ॥२०१ ।५००।५०० । २५० । ४००। पञ्चविंशं शतं देव्यः शुक्रयुग्मे च भाषिताः । एकशो लोकपालानां सामानिकशतत्रयम् ॥२०२ ।१५५ [१२५]। ३००। शतारे सोत्तरे 'देव्यस्त्रिषष्टिर्लोकरक्षिणाम् । सामानिकाश्च तेषां स्युः शुद्धमेव शतद्वयम् ॥२०३ ।६३ । २००। आनते त्वारणे देव्यो द्वात्रिंशल्लोकरक्षिणाम् । सामानिकशतं चकमेकैकस्येति निदिशेत् ॥२०४ ।३२। १००। लोकपालसुरस्त्रीभिः समाः सामानिकस्त्रियः । द्वयानामग्रदेव्यश्च चतस्रोऽप्येकशो मताः ॥२०५ सौधर्मे सोमयमयोस्तयोः सामानिकेष्वपि । पञ्चाशदन्तःपरिषच्चतुःपञ्चशते परे ॥२०६ वरुणस्य समानां च षष्टिः पञ्चशतानि च । षट्छतानि च वेद्यानि ईशानेऽपि तथा द्वयोः ॥२०७ कुबेरस्य समानां च सप्ततिः षट्छतानि च । गणिताः परिषद्देवा बाह्याः सप्तशतानि च ॥२०८ दक्षिणे वरुणस्योक्ताः कुबेरस्योत्तरस्य ताः। कुबेरस्य च याः प्रोक्ता वरुणस्योत्तरस्य ताः ॥२०९ देवोंमेंसे भी प्रत्येकके उतनी (१०००) ही देवियां कही गई हैं ।। २०० ॥ ब्रह्मयुगल में प्रत्येक लोकपालकी देबियों और सामानिकोंकी संख्या पांच सौ (५००) है। आगे लान्तवयुगल में उनकी देवियोंकी संख्या उनसे आधी (२५०) और सामानिक देवोंकी संख्या चार सौ (४००) है ।। २०१ ।। शुक्रयुगलमें प्रत्येक लोकपालकी देवियोंका प्रमाण एक सौ पच्चीस (१२५) और उनके सामानिकोंका प्रमाण तीन सौ (३००) है ॥ २०२॥ शतार और सहस्रारमें प्रत्येक लोकपालकी तिरेसठ तिरेसठ (६३-६३) देवियां और दो सौ(२००) सामानिक होते हैं ।।२०३।। आनत और आरणमें प्रत्येक लोकपालके बत्तीस (३२) देवियां और एक सौ (१००)सामानिक कहे जाते हैं।। २०४ ॥ सामानिक देवोंकी स्त्रियां प्रमाणमें लोकपालोंकी स्त्रियोंके समान होती हैं। इन दोनों मेंसे प्रत्येकके अग्रदेवियां चार मानी गई हैं ।। २०५ ।। ___ सौधर्म कल्पके भीतर सोम, यम और उन दोनोंके सामानिक देवोंमें भी अभ्यन्तर परिषद्का प्रमाण पचास तथा आगेकी मध्य और बाह्य परिषदोंका प्रमाण क्रमसे चार सौ और पांच सौ है । वरुण और उसके सामानिक देवोंकी उक्त तीनों परिषदोंका प्रमाण क्रमशः साठ, पांच सौ, और छह सौ जानना चाहिये। ईशान कल्पमें भी सोम व यम तथा इन दोनोंके सामानिक देवोंकी उक्त तीनों परिषदोंका प्रमाण सौधर्म कल्पके समान समझना चाहिये । सौधर्म कल्पमें कुबेर और उसके सामानिकोंकी प्रथम दो परिषदोंका प्रमाण क्रमसे सत्तर व छह सौ तथा बाह्य परिषद्का प्रमाण सात सौ है । दक्षिणमें जो वरुणकी परिषदोंका प्रमाण कहा गया है वह उत्तरमें कुबेरकी परिषदोंका तथा दक्षिणमें कुबेरकी जो परिषदोंका प्रमाण कहा गया है वह उत्तरमें वरुणकी परिषदोंका जानना चाहिये । २०६-२०९ ॥ उक्त चार श्लोकोंमें निर्दिष्ट लोकपालों और सामानिकोंकी परिषदोंका प्रमाण इस प्रकार है १५ देव्यस्त्रिषष्ठि । २ प सामानिका च । ३ ग सामानिकास्त्रियः । ४ प षष्ठिः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312