Book Title: Lokvibhag
Author(s): Sinhsuri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 240
________________ -१०.१०२] दशमो विभागः [ १८५ सहस्राणामशीति च चत्वार्येव च विस्तृतम् । नगरं तत्र शक्रस्य हेमप्राकारसंवृतम् ॥९४ ।८४०००। क्वचिद्दोलाध्वजैश्चित्रश्चक्रान्दोलनपडिक्तभिः। क्वचिन्मयूरयन्त्राढय[]ोजन्ते शालकोटयः॥९५ शतार्धमवगाढो गां तावदेव च विस्तृतः । प्राकारस्त्रिशतोच्छ्रायः प्राक्चतुःशतगोपुरम् ॥९६ ।५०।३००। ४००। विस्तृतानि शतं चैकं प्रांशूनि च चतुःशतम् । वज्रमूलागवडूय॑सर्वरत्नानि सर्वतः ॥९७ ।१००। ४००। षष्टिमात्र' प्रविष्टो गां ततो द्विगुणविस्तृतः । प्रासादः षट्छतोच्छायः सौधर्मे स्तम्भनामकः ॥९८ ।६० । १२०। ६००। षष्टया देवीसहस्राणां नियुतेनैव सेवितः । नित्यप्रमुदितः शक्रः तत्रास्ते सुखसागरे ॥९९ ।१६००००। पञ्चाशतं प्रविष्टा गां ततो द्विगुणविस्तृताः । प्रासादा अग्रदेवीनामष्टौ पञ्चशतोच्छ्याः ॥१०० ।५० । १००।५००। कनकश्रीरिति ख्याता देवी वल्लभिका शुभा। पूर्वस्यां शक्रतस्तस्या: प्रासादोऽत्र मनोहरः॥१०१ उत्तरस्यां दिशायां तु प्रभायाः श्रेणिसंस्थितम् । अष्टादशविमानं तत् ईशानो यत्र देवराट् ॥१०२ सौधर्म इन्द्र रहता है । ९३ ॥ वहांपर चौरासी हजार (८४०००) योजन विस्तृत और सुवर्णमय प्राकारसे वेष्टित सौधर्म इन्द्रका नगर है ॥ ९४ ।। प्राकारके अग्रभाग कहींपर पंक्तिबद्ध विचित्र ध्वजाओंसे तया कहींपर मयूराकार यंत्रोंसे सुशोभित होते हैं ।। ९५ ।। प्राकार पृथिवीके भीतर पचास (५०) योजन अवगाहसे सहित, उतना (५०) ही विस्तृत तथा तीन सौ (३००) योजन ऊंचा है। इसके पूर्वमें चार सौ (४००) गोपुरद्वार हैं ।। ९६ ॥ ये गोपुरद्वार एक सौ (१००) योजन विस्तृत और चार सौ (४००) योजन ऊंचे हैं। उनका मूल भाग वज्रमय तथा उपरिम भाग सब ओर वैडूर्यमणिमय व सर्वरत्नमय है ॥९७ ।। सौधर्म इन्द्रका स्तम्भ नामक प्रासाद साठ (६०) योजन मात्र पृथिवीके भीतर प्रविष्ट (अवगाढ), इससे दूना (१२० यो.) विस्तृत और छह सौ योजन (६००) ऊंचा है ।। ९८ । उक्त प्रासादके भीतर एक लाख साठ हजार (१६००००) देवियोंसे सेवित सौधर्म इन्द्र निरन्तर आनन्दको प्राप्त होकर सुखसमुद्रमें मग्न रहता है ।। ९९ ॥ सौधर्म इन्द्रकी अग्रदेवियोंके आठ प्रासाद पचास (५०) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट, उससे दूने (१०० यो.) विस्तृत और पांच सौ (५००) योजन ऊंचे हैं ।। १०० ॥ सौधर्म इन्द्रकी कनकश्री इस नामसे प्रसिद्ध श्रेष्ठ वल्लभा देवी है। उसका मनोहर प्रासाद यहां सौधर्म इन्द्रके प्रासादकी पूर्व दिशामें स्थित है ।। १०१।। प्रभा नामक इन्द्रककी उत्तर दिशामें जो अठारहवां श्रेणीबद्ध विमान स्थित है उसमें ९ आब षष्ठिमात्र। लो. २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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