Book Title: Lokvibhag
Author(s): Sinhsuri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 250
________________ -१०.१८९ ] दशमो विभागः [१९५ शतानि पञ्च षट् सप्त चतुःपञ्चकषट्छतम् । शतानां त्रिचतुःपञ्च द्विकत्रिकचतुःशतम् ॥१८० । ५००। ६००। ७०० । ४००। ५००। ६००। ३००। ४००। ५०० । २००। ३००।४००। एकद्वित्रिशतान्येव शताधं च शतं शते । पञ्चवर्गश्च पञ्चाशच्छतमेक' भवेदिति ॥१८१ कालद्धिपरिवाराश्च विक्रिया चेन्द्रसंश्रिताः । तादृशस्तत्प्रतीन्द्रेषु त्रास्त्रिशसमेष्वपि ॥१८२ उक्तं च [ति. प. ८-२८६]-- पडिइंदाणं सामाणियाण तेतीससुरवराणं च । दस भेदा परिवारा णियइंदसमाण पत्तेक्कं ॥८ वृषभास्तुरगाश्चैव रथा नागाः पदातयः । गन्र्धवा मतिकाश्चेति सप्तानीकानि चक्षते ॥१८३ पुरुषाः षडनीकानि सप्तम नतिकास्त्रियः । सेनामहत्तरा षट् स्युरेका सेनामहत्तरो ॥१८४ दामेष्टिहरिदामा च मातल्यैरावतो ततः । वायुश्चारिष्टकोतिश्च अग्रा नीलाञ्जनापि च ॥१८५ महादामेष्टिनामा च नाम्नामितगतिस्तथा । मन्थरो रथपूर्वश्च पुष्पदन्तस्तथैव च ॥१८६ पराक्रमो लघपूर्वश्च नाम्ना 'गीतरतिस्तथा। महासेना क्रमेणते ईशानानीकमुख्यकाः ॥१८७ पूर्वोक्तानीकमुख्यास्ते दक्षिणेन्द्रेषु कीर्तिताः । अपरोक्तानीकमुख्यास्ते चोत्तरेन्द्रेषु वणिताः ॥१८८ सप्तकक्ष भवेदेकं कक्षाः पञ्चाशदेकहा। अशीतिश्चतुरग्रा च सहस्राण्यादिमाः पृथक् ॥१८९ ।४९ । ८४०००। पांच सौ, छह सौ ; तीन सौं, चार सौ, पांच सौ ; दो सौ. तीन सौ,चार सौ : एक सौ, दो सौ, तीन सौ; पचास, सौ, दो सौ : तथा पच्चीस, पचास व सो। सौ. ई. आ. पा.५०० म.६०० अ७००:स. मा. आ. ४०० म. ५०० अ. ६००; ब्रह्मयुगल आ. ३०० म. ४०० अ. ५०० ; लां. का. आ. २०० म. ३०० अ. ४००: शु. म. आ.१०० म. २०० अ. ३०० : श. म. आ. ५० म.१०० अ. २००; आनतादि आ. २५ म. ५० अ. १०० ॥ १७९-१८१ ।।। आयु, ऋद्धि, परिवार और विक्रिया इनका प्रमाण जिम प्रकार इन्द्रोंके कहा गया है उसी प्रकार वह सब उनके प्रतीन्द्रों, त्रास्त्रियों और मामानिकोंके भी जानना चाहिये ।।१८२॥ कहा भी है - प्रतीन्द्र, मामानिक और त्रायस्त्रिश देवों में से प्रत्येकके दस भेदरूप परिवार अपने अपने इन्द्र के समान होता है ।। ८ ।। बैल, घोड़ा, रथ, हाथी, पादचारी, गन्धर्व और नर्तकी : ये सात अनीक कही जाती हैं ।। १८३ ।। प्रथम छह अनीक पुरुषरूप ओर मातवीं नर्तकी अनीक स्त्रीरूप है । उनमें छह सेनामहत्तर और एक सेनामहत्तरी होती है ।। १८४।। दामेष्टि, हरिदाम, मातलि, ऐरावत, वायु और अरिष्टकीति ये छह से नामहत्तर तथा सातवीं नीलांजना महत्तरी : ये सात सेनाप्रमुख [ सौधर्म आदि दक्षिण इन्द्रोंके होते हैं ] 11१८५।।महादामेष्टि, अमितगति, रथमन्थर, पुष्पदन्त, लघुपराक्रम, गीत रति और महासे ना ये सात सेनाप्रमुख ईशान इन्द्र के होते हैं ।। १८६-१८७ ॥ वे पूर्वोक्त सात सेनाप्रमुख दक्षिण इन्द्रोंके तथा बादमें कहे गये वे सात सेनाप्रमुख उत्तर इन्द्रोंके कहे गये हैं ॥ १८८ ।। उपर्युक्त सात अनीकों में से प्रत्येक सात कक्षाओंसे सहित होती है । इस प्रकार उन सात अनीकोंमें एक कम पचास (४९) कक्षायें होती हैं । सौधर्म इन्द्रकी सात अनीकोंकी पृथक १ आ प शत् शतमेकं । २ आ ५ परिवारा च । ३ ति प इंदसमा य । ४ ब नीत । ५ ब हासेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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