Book Title: Lipi Vikas Author(s): Rammurti Mehrotra Publisher: Sahitya Ratna Bhandar View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो शब्द विकासवाद की दृष्टि से यद्यपि मौखिक भाषा के उदय का प्रश्न अरना विशेष महत्त्व रखता है तथापि लिखित भाषा के क्रमागत आविष्कार का मार्ग निश्चित करना उससे कम जटिल प्रश्न नहीं है। मौखिक भाषा के उदय में स्वाभाविक प्रतिक्रियात्मक प्राकृतिक कारण हो सकते हैं। उसमें तो किसी सचेतन उद्योग का कोई प्रश्न मुश्किल से ही उठता है किन्तु लिखित भाषा के विकास में एक विशेष मानसिक उन्नति और किसी अंश में सचेतन प्रयास भी अपेक्षित है। विकास-क्रम में पीछे आने क कारण लिखित भाषा का महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं हो जाता। इसके कारण मौखिक भाषाको अपेक्षाकृत स्थायित्व और देशान्तर गति की शक्ति मिल जाती है। विभिन्न वर्गों के सूत्रों तथा उनमें लगी हुई ग्रन्थियों की भाव-लिपियों और कार्यलिपियों की दुर्गम घाटियों को पार कर पूर्णतया विश्लिष्ट संस्कृत की सी वर्णमाला तक पहुंचना एक लम्बी यात्रा है। इसके आगे ब्राह्मी लिपि का गुप्त लिपि और कुटिल लिपि द्वारा वर्तमान नागरी लिपि तक आना यात्रा का दूसरा उन्नति क्रम है । विकास की इस लम्बी यात्रा का विवरण विद्वान लेखक की भाषा में पढ़ कर हम उस जटिल मागे का अन्दाज लगा सकते हैं । योरुपीय, साभी और भारतीय भाषाओं के विभिन्न स्रोत होते हुए उनके विकास का मागे प्रायः एकसा ही है । मौखिक भाषा के उदय में जो प्रवृत्तियाँ हैं उनमें से कमसे कम अनुकरण और संकेत-निर्माण की प्रवृत्तियाँ लिखित भाषा के उदय में भी परिलक्षित होती है। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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