Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 7
________________ श्री चंद्रप्रभ जी एक ऐसी कीमिया दवा सुझाते हैं, जो कभी बेकार नहीं जाती और वह है, प्रतिक्रियाओं से परहेज़ । वे कहते हैं कि क्रियाओं का होना स्वाभाविक है, किंतु प्रतिक्रियाओं का होना आत्मनियंत्रण का अभाव है । जो अपने पर काबू नहीं रख सकते, वे ही बात-बेबात व्यर्थ की प्रतिक्रियाएं करते रहते हैं । जो अपने जीवन में इस बात का बोध बनाए रखता है कि मैं क्रिया-प्रतिक्रिया के भंवर - जाल में नहीं उलझंगा, वही अपने जीवन में शांति और आनंद को बरकरार रख पाएगा । जीवन की सफलताओं में स्वस्थ - सुंदर शरीर की अपेक्षा स्वस्थ- सुंदर मन की भूमिका कहीं अधिक होती है । जिसका मन रुग्ण है, उसकी सोच भी रुग्ण और विकृत होती है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन को नरक बना डालता है । श्री चंद्रप्रभ जी कहते हैं कि मनुष्य सोच सकता है, इसीलिए वह मनुष्य है 1 इससे भी बढ़कर बात यह है कि सोच ही मनुष्य है । मनुष्य की सत्ता से यदि सोचने-समझने की क्षमता को अलग कर दिया जाए, तो धरती पर मनुष्य की सत्ता का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा, वह एक निर्बल असहाय दोपाया जानवर भर रह जाएगा। व्यक्ति जो भी सोचे, स्वस्थ - सुंदर सोचे, हर बिंदु पर समग्रता और सकारात्मकता से सोचे । 1 आदमी का जीवन को देखने का नज़रिया अत्यंत नकारात्मक है । नकारात्मकता के विष के कारण उसका जीवन तनाव - अवसाद से घिर गया है । इससे उबरने का एकमात्र उपाय सकारात्मकता को अंगीकार करना है। श्री चंद्रप्रभ जी की नज़रों में यह सर्वकल्याणकारी मंत्र है, जो कभी निष्फल नहीं होता । सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं होता । सकारात्मक जीवन-दृष्टि के साथ किया गया पुरुषार्थ निश्चय ही व्यक्ति को लक्ष्य के और करीब ले जाता है । आपको अपनी मंज़िल हासिल हो, यही कामना है । बस, लक्ष्य को अपनी आंखों में बसाए रखें और प्रतिपल पुरुषार्थ को प्रेरित करती आचार्य जी की वाणी को हर - हमेशा हृदय में हिलोरें लेने दें । 1 -सोहन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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