Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
थानातिनां पद जणतो थको फल, अक्षत अथवा सोपारी श्रीनगवंतने बागल मूके ॥३६॥ वर्ग १
गले हाथें न जाय. राजाने, देवने, गुरुने, नैमित्तिक जे थायुष्य जाणे ते ज्योतिषीने : ॥ ५॥
गले हाथे न जोवा. फलें करीने फलनी प्राप्ति थाय ॥३७॥ ॥ जमणे पासे पुरुष, डाबे || पासें स्त्री ऊनी रहीने नगवंत प्रत्ये वांदे. जघन्य नव हाथथी मांडी साठ हाथ श्रव || ॥३६॥ रिक्तपाणिर्न पश्येत्तु, राजानं दैवतं गुरुम् ॥ नैमित्तिकं विशेषेण, फलेन । फलमादिशेत् ॥ ३७॥ ददवामांगन्नागस्थो, नरनारीजनो जिनम् ॥ वन्देता वग्रहं मुक्त्वा, षष्टिं नव करान्विनो॥३॥ ततः कृत्तोत्तरासंगः, स्थित्वा सद्योग मुज्या ॥ ततो मधुरया वाचा, कुरुते चैत्यवन्दनम् ॥ ३॥ उदरे कूर्परौ न्य। स्य, कृत्वा कोशाकृती करौ ॥ अन्योन्याङ्गलिसंश्लेषाद्योगमुश नवेदियम्।। ग्रह मूकी एटले नगवंतथी वेगला रहीने वांदे ॥३७॥ ॥ तेवार पली उत्तरासण करे, ते करीने जली योगमुपायें रहीने पनी मीठी वाणीयें करी चैत्यवंदन करे ॥३५॥॥ पे ट उपर बे कोणी मूकीने कमलना डोडाने श्राकारें मांहे मांहे दश थांगुली नेली कa
॥
५
॥
Jain Educational
Lonal
For Personal and Private Use Only
PADainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222