Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 217
________________ Jain Educationa को सांजे पक्किमणानी क्रिया प्रत्यें करें ॥ २ ॥ ॥ जेम स्त्री ने जोजनना सुखनो | जाण होय ते स्त्रीने जोगव्या विना थाने जोजन खाधा विना मात्र जाणवाथीज सुखी न थाय, तेम क्रिया विना एकलुं ज्ञान फलदायक नथी. क्रिया लोकने विषे फलनी या | पनारी बे, माटे मात्र नाम जाण्याथीज सुखी न थाय जेवारें क्रिया करे तेवारें जोगवी क क्रियैव फलदा लोके, न ज्ञानं फलदं मतम् ॥ यतः स्त्रीजक्ष्यभेदज्ञो, न ज्ञानात् सुखितो भवेत् ॥३॥ गुर्वभावे निजगृहे, कुर्वीतावश्यकं सुधीः । विन्यस्य स्थापना | चार्य, नमस्कारावलीमथ ॥४॥ धर्मादि सर्वकार्याणि, सिध्यन्तीति विदन् हृदि । | देवाय, तेथी सुखी थाय ॥ ३ ॥ ॥ पंडित पुरुष जो गुरुनो योग न होय, तो पोताना | घरने विषे स्थापनाचार्य मांगीने, थापना न होय तो नोकरवाली थापीने पक्किम एं करे ॥ ४ ॥ ॥ धर्मथी सघला कार्यनी सिद्धि पामिये, एवं हृदयने विषे जाणतो थ को सदा सर्वदा धर्मने विषे चित्त वे जेनुं एवो ते पुरुष धर्मनी वेलाने उल्लंघे नही For Personal and Private Use Only Jainelibrary.org

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