Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 214
________________ श्रान ॥१५॥ कर्म निश्चेकरी संध्याकाले वर्जन करे ॥ ४६ ॥ ॥ जो संध्याकाले थाहार करे तो वर्ग ३ व्याधि उपजे, मैथुन सेवा करे तो गर्न इष्ट थाय, निसा करे तो नूत प्रेत पिशाचनी पीडा थाय, अने जो सद्याय करे तो बुछिनी हीनता थाय ॥४॥ ॥ दिवस चरि। मनुं पञ्चरकाण वायु कीधा पनी करे. उविहार, तिविहार, चउविहार प्रत्ये वऊँ, पच्च आहाराजायते व्याधिर्मेथुनागउष्टता ॥ भूतपीडा निघ्या स्यात्, स्वाध्याया दुधिहीनता ॥४७॥ प्रत्याख्यानं मुश्चरिमं, कुर्याकालिकादनु ॥ विविधं त्रि विधं वापि, चादारं वर्जयेत्समम् ॥ ४॥ अहो मुखेऽवसाने च, यो के के घटि। के त्यजेत् ॥ निशानोजनदोषझो, विज्ञेयः पुण्यन्नाजनम् ॥४॥करोति वि| काण करे ॥४॥ ॥रात्रि जोजन संबंधि दोषना जाण होय ते प्रजातवेलानी तथा । १०५॥ सांज वेलानी बेबे घडी वर्जे. रात्रिनोजनना दोषनो जाण होय ते पवित्र पुण्यनु गम जाणवो ॥ ४ ॥ ॥जे सदा सर्वदा रात्रिनोजनने विषे विरति एटखे पञ्चका Jain Educationa l en For Personal and Private Use Only Jainelibrary.org

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