Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 203
________________ ३ रूपवंत होय, ४ सर्वलोकने वाहालो होय, ५ क्रूर न होय, ६ संसारथी बीये, मू र्ख न होय, ७ सदा दाक्षिण्यवंत होय ॥६॥ ॥ ए लजावंत होय, १० दया सहि त होय, ११ कोई ऊपर राग द्वेष न करे, १५ सौम्य नजर होय, १३ गुणनो रागी होय, १४ नली धर्मकथा सहित होय, १५ जला परिवारवालो होय, १६ दीर्घदृष्टि क्रूरो नवनीरुश्चाशगे दादिण्यवान् सदा ॥६॥ अपनपी च सदयो, मध्यस्थः । सौम्य एव च ॥गुणरागी सत्कथश्च, सुपदो दीर्घदर्यपि ॥ ७॥ दृानुगतो Maविनीतः, कृतज्ञः सुदितोऽपि च ॥ लब्धलदो धर्मरत्नयोग्य एनिर्गुणैनवेत् । Hind॥प्रायेण राजदेशस्त्रीनक्तवार्ता त्यजेत्सुधीः॥ ततो नार्थागमः कश्चित्, ते जंडो विचार करनार होय ॥७॥ ॥ १७ वृद्ध माणसने माननार होय, १० वि. नयवंत होय, रए करेला उपकारनो जाण होय, २० परम हितार्थ होय, २१ सर्व वातना नेदमां समजे, ए एकवीश गुणें करी सहित श्रावक धर्मरत्नने योग्य होय || जे पंडित ते प्रायें राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा अने जक्तकथानो त्याग करे, केमके, Jain Education For Personal and Private Use Only

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