Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 206
________________ श्राग्जालक्षणनो तदन त्याग करवो ॥ १४ ॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१॥ वर्ग ३ न्यायें धन उपार्जे, चर्यायें चालतो थको देश विरुङ अने कालविरुष कार्यने गंडे, ॥१०॥ त्यागे; राजाना वैरीनी संगत न करे, घणा माणससाथें विरोध न करे ॥१॥ ॥ कुल कृत्यं, कुसीदस्याप्ययाचनम् ॥ विरोधः स्वजनैः सार्ध, मैत्री चापि परैर्नरैः ॥ ॥१६॥ ऊर्ध्वारोहणमोदार्थ, जुक्ति त्यस्य दंडनात् ॥ दौस्थ्ये बंधोराश्रयश्च, स्वयं स्वगुणवर्णनम्॥१७॥जक्त्वा स्वयं च दसनं, यस्य कस्यापि नदाणम्॥ एतानि च विरु हानि, मूर्खचिह्नानि संत्यजेत् ॥ १७ ॥ न्यायार्जितधनश्चर्या, मदेशकालको त्यजेत् ॥ राजविवेषिन्निः संगं, विरोधं च गणैःसमम् ॥रणा अ न्यगोत्रैर्विवादं च, शीलाचारकुलैः समैः॥ सुप्रातिवेश्मके स्थाने, कृतवेश्मान्वि ने श्राचार जे शील ते जेनां पोता सरखां होय एवा अन्यगोत्र साथें विवाह करे..॥१०॥ वली जला पाडोशीने स्थानके घर बनावीने बांधव सहित रहे॥२०॥ ॥ ॥ ॥ Jain Educational For Personal and Private Use Only Mainelibrary.org

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