Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 211
________________ अंतःकरणवाला साथे, पापोयें करी पतित थयेला साथें, श्रालोक श्रने परलोकनेविषे | हितनी श्छा करनार प्राणी कोई पण प्रकारना व्यवहारनो त्याग करवो ॥ ३५ ॥ पोतानी वस्तु वेचतो थको असत्य न बोले, सत्य बोले, बीजानी वस्तु सेतो थको । संचकार दीधो ते प्रत्ये लोपे नही ॥ ३६॥ ॥ जे डाह्यो होय ते अणदीवी वस्तुनो। न्, व्यवहारं परित्यजेत्॥३५॥ विचारवान् विक्रीणानो वदेत् कूटक्रयं नहि ॥ आददानोऽन्यसक्तानि, सत्यंकारं न लोपयेत् ॥ ३६ ॥ अदृष्टवस्तुनो नैव, साटकं दृढयत्सुधीः ॥ स्वर्णरत्नादिकं प्रायो, नाददीतापरीदितम् ॥ ३७॥ रा. जतेजो विना न स्यादनापन्निवारणम् ॥ नृपाननुसरेत्तस्मात्, पारवश्यमनाथ यन् ॥३७॥ तपस्विनं कविं वैद्य, मर्मज्ञं नोज्यकारकम् ॥ मंत्रकं निजपूज्यं च, साटो सहसा निश्चित नही करे. सोनु, रुघु अने रत्न ए प्रायें श्रणपरख्या सेवा नहि । |॥३७॥ ॥राजाना तेज विना अनर्थ श्रने आपदानो नाश न होय, माटे राजादि कनो श्रासरो सेवो, पण परवशपणुं बांडवू, पोताने वश रहेतुं ॥३७ ॥ जे पंडित Jain Educational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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