Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 205
________________ Jain Education नी, चोरनी एटलानी संगति वर्जन करे ॥ १३ ॥ ॥ अजाण्या माणसनी प्रशंसा क | रवी, अजाण्या माणसने पोताना घरमा रहेवा स्थानक आपकुं, अजाण्या कुलसायें सगाइ करवी, अजाण्या माणसने चाकर राखवो, पोताथी मोहोटा माणस उपर कोप करवो, पोताथी मोटा वैरी साथे मत्सर राखवो, गुणवान् साथै विवाद करवो, पोता थी मोहोटो चाकर राखवो, मायें देतुं करीने धर्म करवो, व्याजें उबीनुं उधारुं धन या लम् ॥ १३ ॥ प्रज्ञातस्योत्कीर्तनं यत्, स्थानदानं तथाविधम् ॥ ज्ञातकुल | संबन्धोऽज्ञातभृत्यस्य रक्षणम् ॥ १४ ॥ महत्सु कोपकरणं, मदता विग्रहस्त या ॥ विवादो गुणिनिः सार्धं, स्वोच्चनृत्यस्य संग्रहः ॥ १५ ॥ रुणं कृत्वा धर्म पी मागवुं नहीं, स्वजन साथै विरोध करवो, पारका माणस सायें स्नेह प्रीति राखवी, मोहने श्रर्थे उंचे चढवुं, चाकरने दंडीने धन जोगवनुं, दारिद्र श्रावे थके जाइ बांधवनो आश्रय करवो, पोते पोताना गुणनां वखाण करवां, पोतें वात कही पोते ज इसवुं, जे ते वस्तु खावी, ए सर्व श्रालोकमां तथा परलोकमां विरुद्ध एवां मूर्खनां For Personal and Private Use Only jainelibrary.org

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