Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
वर्ग ३
आपन तेथी अर्थप्राप्ति कंश थती नथी, एटबुंज नही, परंतु सामो अनर्थ उपजे जे ॥॥ ॥
रूमा मित्र साथें नाश् साथें मांहोमांहे धर्मवार्ता करे, जे धर्मनां शास्त्र जाणतो होय । ॥ ९MIN|तेनी पासें बेसे, तत्त्वना जाव जाणे, विचारे ॥१०॥ ॥ जेथकी पापनी बुकि ऊप||
जे तेनी संगति न करे, कोई क्रोधने वचनें कहे तोपण पोतें न्यायमार्ग न मूके ॥११॥ प्रत्युतानर्थसंनवः ॥णा सुमित्रैर्बन्धुनिः साई, कुर्यामकथामपि ॥ तब्दिा सद शास्त्रार्थरहस्यानि विचारयेत् ॥ १० ॥ पापबुनिवेद्यस्मार्जयेत्तस्य सं
गतिम् ॥ कोपेन वचनेनापि, न्यायं मुञ्चेन्न कर्दिचित् ॥११॥ अवर्णवादकस्या aपि, न वदेउत्तमाग्रणीः ॥ पित्रोर्गुरोः स्वामिनोऽपि, राजादिषु विशेषतः॥१२॥ मूर्खेऽष्टैरनाचार,मलिनैर्धर्मनिन्दकैः ॥ उःशीलैलोंजिनिश्चोरैः, संगतिं वर्जयेद जे उत्तम मनुष्य पंडित ते कोश्नो श्रवगुण कहे नही; माता, पिता, गुरु, शेव अने खामीना अवगुण बोले नही, वली विशेषे राजादिकनो अवगुण न बोले ॥ १५ ॥ मूर्खनी, पुष्टनी, अनाचारीनी, मलीननी, धर्मना निंदकनी, कुशीलवालानी, लोजी
॥१०॥
Jain Education
I
o nal
For Personal and Private Use Only
Jw.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222