Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 202
________________ श्रा०ज० ॥ एए ॥ तत्त्व जाण्यां वे जेणे एवा माणसने गुणनी दाणी न थाय ॥ २ ॥ ॥ कुलहीन मा एस पण गुणें करी उत्तमता पामे, जेम कचराथी उत्पन्न थयेलुं कमल मस्तकें चड़े बे, छाने कचरो बे ते पगें घसाय बे ॥ ३ ॥ ॥ उत्तम माणसनी कोइ खाण नथी, | संसारमां उत्तम माणसनुं कोइ कुल नथी, मनुष्य मात्र पोताने स्वजावें गुणेकरीज ज्ञाता खिलतत्त्वानां नृणां न स्याङ्गुणच्युतिः ॥ २ ॥ गुणैरुत्तमतां याति, वंशदी नोऽपि मानवः ॥ पंकजं ध्रियते मूर्ध्नि, पङ्कः पादेन घृष्यते ॥ ३॥ न काचिङत्तमा नां स्यात्, कुलं वान्यगतिः क्वचित् ॥ प्रकृत्या मानवा एव, गुणैर्याति जगन्नु तिम् ॥४॥ सत्वादिगुणसंपन्नो, राज्यार्दः स्याद्यथा नरः ॥ एकविंशतिगुणः स्या धर्मार्दो मानवस्तथा ॥ ५ ॥ प्रदुषहृदयः सौम्यो, रूपवान् जनवल्लनः ॥ अ जगतमां स्तववा योग्य थाय बे ॥ ४ ॥ ॥ सत्वादिक गुणें संपन्न पुरुष ते जेम रा ज्ययोग्य होय, तेम श्रावकना एकवीश गुणें सहित माणस ते धर्मयोग्य होय 112 11 ॥ जेनुं क्रुद्र हृदय न होय ते अक्क्षुद्र नामा प्रथम गुण, २ सौम्य होय, Jain Educationonal For Personal and Private Use Only वर्ग ३ ॥ एए ॥ jainelibrary.org

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