Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Jain Educationa लाटें, कंठें, हृदयें ने पेट ऊपर श्रीजगवंतने तिलक करे ॥ २ ॥ ॥ प्रजातें पवित्र वास करें, बे पोहोरें फूलन । पूजा करे, तेम सांजें धूप दीप करी पूजा करे एम पंकि तें त्रिकाल पूजा करवी ॥ ३० ॥ ॥ पूजा करतां एक फूलना बे कटका न करवा, क प्रजाते शुवासेन, मध्याह्ने कुसुमैस्तथा ॥ संध्यायां धूपदीपाच्यां विधेयार्चा | मनीषिभिः ॥३०॥ नैकं पुष्पं द्विधा कुर्यान्न विन्द्यात्कलिकामपि ॥ पत्रकुमलने | देन, हत्यावत्पातकं वेत् ॥ ३१ ॥ हस्तात्प्रस्खलितं पुष्पं, लग्ने पादेऽथवा जु वि ॥ शीर्षोपरि धृतं यच्च, तत्पूजा न कर्हिचित् ॥३२॥ निर्गन्धमुग्रगन्धं च, त्याज्यं कुसुमं समम् ।। स्पृष्टं नीचजनैर्दष्टं, कीटैः कुवसनैर्धृतम् ॥ ३३ ॥ ली पण बेदवी नदी, पत्री फूल जूडुं न करखुं. एम करवाथी हत्या सरखुं पाप लागे ॥ ३१ ॥ ॥ हाथ थी पी गयेलुं, जेने पग लाग्यो, जे भूमियें पड्युं, तथा जे मस्तक उपर आयुं, एवं जे फूल ते पूजायोग्य कद्देवाय नही ॥ ३२ ॥ ॥ गंध रहित, जय For Personal and Private Use Only inelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222