Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ Jain Educationa करी जे जगवंतनी पूजा बे तेने रूमा जीव जला पर्वने दिवसें करे, अथवा तीर्थे जइने करे ने प्रथम कही जे उत्तम या प्रकारनी पूजा ते नित्य करवी, तथा बीजी पण वली जे जे जली वस्तु होय ते जावें करी पूजामां जोडीयें ॥ ३६ ॥ ॥ |तेवार पटी विशेष थकी धर्म पामवानी इछाएं पवित्र मार्ग प्रत्यें मूकतो, धौतवस्त्र यन्ति पूजां, नव्याः सुपर्वदिवसेऽपि च तीर्थयोगे ॥ पूर्वोक्तचारुविधिनाष्टविधां च नित्यं, यद्यहरं तदिह नाववशेन योज्यम् ॥ ३६ ॥ ग्रामचैत्यं ततो यायाद्विशे षा-धर्म्मलिप्सया ॥ त्यजन्नशुचिमध्वानं, धौतवस्त्रेण शोभितः ॥ ३७ ॥ यास्या मीति हृदि ध्यायंश्चातुर्य फलमश्नुते ॥ उचितो बनते पाष्ठं, त्वाष्टमं पथि च |पहेरवे करी शोजतो गामना देरासरने विषे जाय ॥ ३७ ॥ ॥ देरासरें जश्शुं एम मनमां धरतो थको चोथनुं एटले एक उपवासनुं फल पामे, छाने जेवारें देरासरें जावाने ऊठे तेवारें बठनुं फल थाय, देरासरने मार्गे जातां श्रवम फलनो लाज थाय ॥ ३८ ॥ በ Wonal, For Personal and Private Use Only jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222