Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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| तें करी हुं पूजुंनुं ॥ १८॥ इति चतुर्थी अत पूजा ॥४॥ ॥ जलां एवां ना बियेर, फनस, श्रामलां, बीजोरां, जंबीर, सोपारी ने थांबां प्रमुख फलेंकरीने स्वर्गादिक देवलोका| दिक घणा फलना देनार एवा श्रीदेवाधिदेव एटले सर्व देव थकी अधिक देव जे श्रीन रपीह, श्रीमन्तमादिपुरुषं जिनमर्चयामि ॥ १८ ॥ सन्नाखिकेरपन सामलबीज पूरजंबीरपूगसहकारमुखैः फलैस्तैः ॥ स्वर्गाद्यनल्पफलदं प्रमदाप्रमोद, दे वाधिदेवमशुनप्रशमं महामि ॥ १९ ॥ इति फलपूजा ॥ सन्मोदकैवर्टकमंडक शालिदालिमुख्यैरसंख्यरसशाखिभिरन्ननोज्यैः ॥ दुत्तइव्यथाविरहितं स्व हिताय नित्यं, तीर्थाधिराजमदमादरतो यजामि ॥ २० ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥
॥जला एवा
गवंत ते प्रत्यें हर्षे करी हुं पूजुं हुं ॥१॥ इति पंचमी फल पूजा ॥५॥ लावा, वमां, मांडा, चोखा, दाल प्रमुख घणा रससहित शोजतां एवां नैवेद्य तेणेक रीने भूख ने तृषानी पीमा रहित एवा जगवंत तीर्थंकर ने पोताना हितने श्रर्थे नि
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